तस्वीरों में दिख रहे ये दृश्य किसी कस्बाई सड़क के नहीं, और न ही किसी स्टेट हाइवे के हैं. यह हाल है देश के तीसरे सबसे लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 48 का. जगह-जगह धूल का बवंडर, जहां-तहां गायों की चहलकदमी और गड्ढों में फंसकर उलटते-पलटते वाहन इस हाइवे की बदहाली को बयान करते हैं. 2,807 किलोमीटर लंबे इस राष्ट्रीय राजमार्ग को देश के सात राज्यों की लाइफलाइन माना जाता है. पर विडंबना कि गुरुग्राम से जयपुर तक 224 किलोमीटर की दूरी में यह राजमार्ग हर साल 300 से ज्यादा लोगों की जिंदगी लील लेता है. शायद यही कारण है कि अब इसे 'मौत का हाइवे' कहा जाने लगा है.
पिछले हफ्ते इस हाइवे की पड़ताल के दौरान सैकड़ों जगह मौत के निशान नजर आए. जयपुर से गुरुग्राम तक हर 100-200 मीटर की दूरी पर जहां एक-एक फुट गहरे गड्ढे थे, वहीं 42 पॉइंट ऐसे मिले जहां यह हाइवे छह की बजाय सिर्फ दो लेन का रह जाता है. बरसात में तो धारूहेड़ा, मानेसर, बिलासपुर और गुरुग्राम में यह हाइवे पानी का दरिया बन जाता है जिसमें ट्रैफिक रेंगरेंगकर चलता है. इसी आठ अक्तूबर को हुई बरसात के बाद भी धारूहेड़ा में करीब 8-10 किलोमीटर लंबा जाम लग गया जो अगले दिन तक बना रहा. इस पूरी लंबाई में एक भी जगह ऐसी नहीं जहां सर्विस लेन दो-तीन किमी तक भी ठीकठाक हो.
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