जिन्होंने बढ़ाई कुनबे की शान
India Today Hindi|August 10, 2022
आदिवासी समाज के ऐसे पुरुष और महिलाएं जिन्होंने अपनी उपलब्धियों से अपने समुदायों के लिए फख्र करने का मौका मुहैया कराया
कौशिक डेका, किरण डी. तारे, जीमॉन जैकब, अजय सुकुमारन, अमिताभ श्रीवास्तव और राहुल नरोन्हा
जिन्होंने बढ़ाई कुनबे की शान

कोनराड के. संगमा, 44 वर्ष

मुख्यमंत्री, मेघालय, गारो जनजाति

दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल से पढ़े और लंदन के वार्टन और इंपीरियल कॉलेज से मैनेजमेंट की डिग्री लेने वाले कोनराड के. संगमा अपनी जनजातीय पहचान को मुख्यधारा वाले व्यक्तित्व से कुशलता के साथ जोड़ और मिलाकर रखते हैं. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा के बेटे कोनराड की कोशिश रही है कि वे नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) को पूर्वोत्तर के लोगों की प्रतिनिधि पार्टी के रूप में खड़ा करें.

"पहले आदिवासी खुद को अलग-थलग महसूस करते थे. आज विभिन्न जनजातियों के नौजवानों में आत्मविश्वास है, वे दूसरों के मुकाबले अपने को मजबूत जमीन पर खड़ा पाते हैं और अपनी कुव्वत दिखाने के लिए बेताब हैं"

पाबीबेन रैबारी, 38 वर्ष

उद्यमी, रैबारी जनजाति

गुजरात के कच्छ इलाके में गरीबी में पलीं-बढ़ीं पाबीबेन रैबारी अपनी ही जनजाति की पहचान से जुड़ी बारीक कढ़ाई पर काम शुरू करने से पूर्व एक साधारण-सी गृहिणी थीं. उसी में उन्होंने हरी जरी नाम से एक नई शैली तैयार कर डाली, जिसके बाद उनके लिए नई राहें खुलीं और उनका ब्रांड पाबीबेन अब फैशन की दुनिया में एक अहम नाम है, जिसके कपड़े 45 देशों को निर्यात होते हैं. उनके बैनियन ट्री फाउंडेशन में 300 आदिवासी महिलाएं काम करती हैं और इसका सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपए है.

"गांव की औरतों को अपना घर छोड़े बिना अच्छी-खासी कमाई करने के मौके मिलने चाहिए”

भज्जू श्याम, 51 वर्ष

चित्रकार, गोंड जनजाति

This story is from the August 10, 2022 edition of India Today Hindi.

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