किसान कैसे करें फसलों की पाले से सुरक्षा
Farm and Food|December Second 2022
सर्दी का मौसम शुरू होते ही हर किसी के सामने ठंडक एक समस्या बन कर खड़ी हो जाती है.
डा. आरएस सेंगर
किसान कैसे करें फसलों की पाले से सुरक्षा

जब सर्दी अपनी चरम सीमा पर होती है, उस वक्त किसान को भी अपनी फसलों को बचाने की चिंता सताने लगती है, क्योंकि कड़क सर्दी के कारण फसलों पर पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है.

कड़ाके की सर्दी के आते ही पाले का नाम सब के दिमाग में आ ही जाता है. पाला किसी प्रकार की बीमारी न होते हुए भी फसलों, विभिन्न सब्जी, फूल एवं फलोत्पादन पर बुरा असर डालता है, जिस के कारण सब्जियों में 80-90 फीसदी, दलहनी फसलों पर 60-70 फीसदी और अनाज वाली फसलों (गेहूं व जौ) में 10-15 फीसदी तक नुकसान हो जाता है. इस के अतिरिक्त फलदार पौधे जैसे पपीता व केला आदि में भी 80-90 फीसदी तक का नुकसान पाले के कारण देखा गया है.

पाले का प्रकोप इतना गंभीर होता है कि किसान को पाले से बचाव के लिए कुछ भी उपाय करने का वक्त नहीं मिल पाता है, जिस के कारण हमें काफी नुकसान उठाना पड़ता है.

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे देश की बढ़ती आबादी के लिए उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है. लिहाजा, उत्पादन वृद्धि के लिए जरूरी है सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और बेहतर फसल प्रबंध में रबी फसलों के लिए पाले से होने वाले नुकसान को रोकने या कम करने के उपाय प्रमुख हैं.

पाला पड़ने के लक्षण 

प्रायः पाला पड़ने की संभावना 1 जनवरी से 10 जनवरी तक अधिक रहती है. जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो और तापमान कम हो जाए, तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. दिन के समय सूरज की गरमी से पृथ्वी गरम हो जाती है और जमीन से यह गरमी विकिरण द्वारा वातावरण में बदल जाती है, इसलिए रात में जमीन का तापमान गिर जाता है, क्योंकि जमीन को गरमी तो मिलती है नहीं और इस में मौजूद गरमी विकिरण द्वारा नष्ट हो जाती है.

जब रात का तापमान 32 डिगरी फारेनहाइट अथवा 0 डिगरी सैंटीग्रेड से कम हो जाता है, तो ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती हैं यानी वायु में निहित वाष्प जल कणों में बदल कर सीधे हिम कणों में बदल जाती हैं. इस प्रकार हिम के रूप में बनी ओस को पाला कहते हैं.

पाला 2 प्रकार का होता है:

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