समस्तीपुर जिले में विद्यापति नगर थाना क्षेत्र के मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मनोज झा के परिवार में थोड़ी चहलपहल थी. कई दिनों बाद परिवार में बना था. क्योंकि मनोज खुशी का माहौल झा की 2 महीने पहले ब्याही गई बेटी निभा अपने पति आशीष के साथ मायके आई थी.
उन के लिए साधारण दिनों से अच्छा अलग खाना पकाया जाना था. शाम होने से पहले मनोज झा मछली ले कर आए थे. मछली देख कर उन की पत्नी सुंदरमणी देवी तुनकती हुई बोली, “ई मछली पकतई कैसे?"
“काहे की भेलई?" मनोज झा ने आश्चर्य से पूछा.
"की भेलई! गैस सिलेंडर ले गेलई हरामजादा!" सुंदरमणी बोली.
"के ले गेलई, अहां के बुझौव्वल काहे बुझाव छियय हो सत्यम के माई." मनोज बोले.
“अरे मनोज, हम बताव छियय. सहुकरवा के दूगो आदमी आइल छियय. खूब गोस्सा में गारीगलौज कैलकय हम केतनो समझैलियय, लेकिन नय मानलौ औ सिलेंडर उठा के लो गेलौ." मनोज झा की विधवा मां सीता देवी दुखी मन से बोलीं.
"ओक्कर ई मजाल, किश्त के सूद लेवे के बाद ई हरकत कईलकय. अच्छा, कल्हे जा के ओकरा से फरिया लेव. लकड़ी पर पकावे के इंतजाम कअ." सुंदरमणी की ओर मुंह कर मनोज बोले.
अपने पिता, मां और बाबूजी की बातें निभा भी सुन रही थी. वह जानती थी कि उस के पिता पिछले 5 साल से कर्ज में डूबे हैं. कर्ज की किश्तें नहीं चुकाने के चलते घर की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई है. उन्होंने बड़ी दीदी किरण की शादी में जो कर्ज लिया था, वह अभी तक नहीं चुक पाया था. वह उदास मन से मछली का थैला ले कर आंगन में धोने चली गई.
निभा के दिमाग में अचानक किरण की शादी का वह दृश्य घूम गया. बारात आने वाली थी. सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन मनोज झा एक कोने में उदास बैठे थे. उन के सामने गांव का एक आदमी भी बैठा था. वह एकदम से झकाझक कुरता पायजामे में दबंग की तरह दिख रहा था.
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