दिल्ली के प्रगति मैदान के सामने भैरों मंदिर के पास सफेद रंग की स्कौर्पियो गाड़ी में बैठे दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन सिंह को करीब एक घंटा हो चुका था, लेकिन जिस शख्स का वह बेसब्री से इंतजार कर रहे थे वो अभी तक नहीं आया था.
अपने स्टाफ के साथ सादा लिबास में सतेंद्र मोहन ही नहीं 2-3 अलगअलग प्राइवेट गाड़ियों में उन की टीम के दूसरे लोग भी इसी तरह की बेचैनी से पहलू बदल रहे थे.
"गुलाब, तुम्हें यकीन तो है कि तुम्हारा शिकार इसी रास्ते से निकलेगा और आज ही आएगा." इंसपेक्टर सतेंद्र जब इंतजार करतेकरते ऊब गए तो उन्होंने एएसआई गुलाब से पूछ ही लिया. क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि गुलाब के पास शायद पूरी जानकारी नहीं है.
"जनाब सूचना एकदम सटीक है. बस ये नहीं पता कि उस को आने में इतनी देर कैसे हो गई. मैं अपने सोर्स से एक बार फिर कनफर्म कर लेता हूं." कहते हुए एएसआई गुलाब ने जेब से फोन निकाला और किसी से बात करने लगा.
बात करने के बाद जब उस ने फोन बंद किया तो उस के चेहरे की चमक देखने लायक थी. वह बोला, "जनाब शिकार अगले 5 से 10 मिनट में आने वाला है, रास्ते में है."
इस के बाद भैरों मंदिर के बाहर खड़ी चारों प्राइवेट गाड़ियों में बैठे पुलिस वाले गाड़ियों से उतर कर इधरउधर फैल गए. जबकि कुछ गाड़ियों में ही बैठे रहे.
करीब 10 मिनट बाद स्कूटी पर सवार एक व्यक्ति वहां से गुजरा तो अचानक सतेंद्र मोहन की गाड़ी ने ओवरटेक कर के स्कूटी सवार को रुकने पर मजबूर कर दिया. इस से पहले कि स्कूटी सवार कोई सवालजवाब करता, आसपास फैली टीम के लोगों ने उसे घेर लिया.
"भाई, कौन हो आप लोग और मुझे इस तरह क्यों घेरा है?" स्कूटी सवार ने सवाल पूछा तो उस से पहले ही सतेंद्र मोहन ने उस की स्कूटी की चाबी निकाल ली और चालक को स्कूटी से हटा कर उस की सीट वाली डिक्की खोली.
डिक्की में एक बैग रखा था, जिसे देख कर इंसपेक्टर सतेंद्र की आंखें चमक उठीं. बैग खोल कर देखा तो उस में कुछ मैडिसिन थीं. सतेंद्र मोहन सिंह की आंखों की चमक से ही लग रहा था कि उन्हें मानो उन दवाइयों की ही तलाश थी.
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