बे-इश्क उम्र कट नहीं सकती और यों ताकत ब कदर-ए-लज्जत-ए-आजार भी नहीं
मिर्जा गालिब के इस शेर में अगर ललित मोदी और सुष्मिता सेन की मालदीव से बीती 14 जुलाई से शुरू हुई अधेड़ प्रेम कहानी का अक्स न दिखे तो जाफर ताहिर के इस शेर से मजमून एक हद तक तो समझ आता है।
इक उम्र भटकते हुए गुजरी है जुनूं में अब कौन फरेब-ए-निगह-ए-यार में आए
वे दोनों ही कामयाब शख्सियतें उम्र भर एक जूनून में जीती रहीं, लेकिन भटकाव ने उन का दामन अभी छोड़ा नहीं है. मुमकिन यह भी है कि ताजा शिगूफा भी इन दोनों को किसी मंजिल या मुकाम तक न ले जा पाए, क्योंकि ये दोनों ही एकदूसरे का पहला प्यार नहीं हैं. आखिरी है यह कहने और समझने की गलती भी नहीं की जा सकती.
इन की निगाहें और मिजाज दोनों कारोबारी हैं. इस तरह के आधे कामयाब और शोहरतशुदा लोग प्यार भी अपने किसी न किसी मुनाफे के लिए करते हैं, जो जज्बाती भी हो सकता है. फिर भी ऐसा लगता है कि प्यार तो आखिर प्यार है, जो धर्म, जातपात, अमीरीगरीबी वगैरह कहां देखता है.
यानी मान लेना चाहिए कि प्यार अंधा होता है लेकिन यह प्यार काना है, एक आंख से देखता है. तभी तो दोनों 56 के ललित और खासतौर से 47 की सुष्मिता कभी किसी के नहीं हो पाए.
बात सुष्मिता सेन से शुरू की जाए तो वह मिस यूनिवर्स रही हैं. जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही सैक्सी भी हैं. लेकिन बहुत अच्छी ऐक्ट्रैस कभी खुद को साबित नहीं कर पाईं. मान लेने में रत्ती भर भी हर्ज नहीं कि वह प्रतिभाशाली अभिनेत्री कभी नहीं रहीं.
खिताबों का उन की खूबसूरती से तो नाता है पर ऐक्टिंग एक अलग हुनर है, जो उन में जितनी तादाद में था, उतनी ही वह चल पाईं. 'कर्मा और होली' एक हिंदी फिल्म थी, यह 90 फीसदी सिने प्रेमियों को नहीं मालूम. मालूम तो उन्हें यह भी नहीं कि साल 2009 में ही प्रदर्शित गुमनाम सी फिल्म 'जिंदगी रौक्स' में सुष्मिता सेन के साथ दिखाई दिए शाइनी आहूजा का चेहरामोहरा कैसा है और आजकल वह कहां हैं.
इस के एक साल पहले आई 'आग' फिल्म जरूर कुछ लोगों के जेहन में है लेकिन उस की वजह सुष्मिता सेन नहीं बल्कि अमिताभ बच्चन और उन के बाद अजय देवगन हैं. इसी तरह 'डू नाट डिस्टर्ब' भी गोविंदा की वजह से चली थी.
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