जो स्वरूप से ही मुक्त है उसे अज्ञान के शिकंजे में कसकर ग्रसनेवाला कौन ? बुद्धि को तुच्छ बनानेवाला कौन ? विद्यार्थियों की तेजस्विता, समाज के सौहार्द, राष्ट्र के गौरव और विश्व के मंगल का विघातक कौन ? ऐसे सभी दहकते प्रश्नों के उत्तर में एकमात्र निराकरणीय समस्या है - 'जड़ता की स्वीकृति और चेतनता का तिरस्कार ।'
ब्रह्मनिष्ठ लोकसंत पूज्य आशारामजी बापू की सत्प्रेरणा से शुरू हुई सत्प्रवृत्तियों की श्रृंखला हर ओर से इसी मूल समस्या पर कुठाराघात करती है । उसी श्रृंखला की एक कड़ी है 'तुलसी पूजन दिवस', जिसकी शुरुआत संतश्री द्वारा २५ दिसम्बर २०१४ को की गयी थी। पूज्यश्री के शुभ संकल्पों से आज यह पर्व लोकस्वीकृत हो विश्व-भूमंडल को अनुप्राणित करने* में रत है । आप सभीको 'तुलसी पूजन दिवस' की हार्दिक बधाइयाँ ! इस अवसर पर आइये समझें कि मूल समस्या क्या है और उसके समाधान में इस दिवस का क्या योगदान है।
समस्या का अवलोकन
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ये पाँच मंगलकारी बातें आज से ही जीवन में लाओ
यदि प्रिय वस्तुओं का त्याग कर दिया तो वासना कम होती जायेगी एवं भगवत्प्रीति बढ़ती जायेगी।
पूज्य बापूजी का पावन संदेश
चेटीचंड पर्व पर
गृहस्थ में रहने की कला
जैसे बुलबुला पानी में है वैसे ही सब जीव-जगत ब्रह्म में ही है।
ऐसे दुर्लभ महापुरुष मुझे सद्गुरुरूप में मिल गये
(गतांक से आगे)
एक महान उद्देश्य ने खोल दिये कल्याण के अनेक मार्ग
अपने हृदय में धर्म के प्रति जितनी सच्चाई है उतनी ही अपनी उन्नति होती है।
उस एक को नहीं जाना तो सब जानकर भी क्या जाना ?
देवर्षि नारदजी जयंती : १७ मई
आयुर्वेद का अद्भुत प्राकट्य व एलोपैथी की शुरुआत
भविष्य में सुखी होने की चिंता न करें, वर्तमान में अपने चित्त को प्रसन्न रखें।
आत्मसाक्षात्कार के ३ सरल उपाय
साधनाकाल में संसारी लोगों से अनावश्यक मिलना-जुलना बहुत ही अनर्थकारी होता है।
सुखी और प्रसन्न गृहस्थ-जीवन के लिए...
श्री सीता नवमी: १० मई
निःस्वार्थ कर्म का बल
विद्यार्थी संस्कार