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अनोखा भविष्यवक्ता!
कभी-कभी जीवन में ऐसी घटनाएँ घटित हो जाती हैं, जिन्हें देखकर हमें आश्चर्यचकित होना पड़ता है...
शक्ति का प्रतीक 'देवी दुर्गा'
यह उत्सव राजा कंसनारायण ने अपने क्षेत्र राजाशाही (बंगाल) प्रान्त के ताहिरपुर में आयोजित किया था। कहा जाता है कि तभी से दुर्गा पूजा को विशेष लोकप्रियता मिली। इनकी पूजा पद्धति को 'कंसनारायण पद्धति' कहा जाता है।
कर्नाटक में कांग्रेस के नए सितारे डी.के.शिवकुमार
कर्नाटक में कांग्रेस की बड़ी जीत में जिन प्रमुख नेताओं की भूमिका अहम मानी जा रही है, उनमें डी.के. शिवकुमार भी शामिल हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत - क्या कहते हैं राहुल-प्रियंका के सितारे?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की एक बड़ी वजह राहुल- प्रियंका दोनों की कड़ी मेहनत मानी जा रही है।
सांस्कृतिक एकता का प्रतीक पुरी की रथयात्रा
नारद ने ही श्रीभगवान् से प्रार्थना की कि हे भगवान् आप चारों के जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप में मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्यजनों के दर्शन हेतु पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहें और महाप्रभु ने 'तथास्तु' कह दिया।
आयुर्वेद के अनुसार आरोग्य हेतु अनुकूल रत्न का चयन
भारतीय ज्योतिष में रत्नों का विशेष महत्त्व है। कुल 84 रत्न और उपरत्न हमें पृथ्वी और समुद्र के गर्भ से प्राप्त होते हैं, जिनका मानव जीवन पर गहरा प्रभाव है।
देवताओं का मिलन-पर्व है कुल्लू दशहरा
कुल्लू दशहरा में रामलीला का मंचन नहीं होता वरन् पालकियों में सजे-धजे देवी-देवता पधारते हैं, जो भगवान् श्री रघुनाथ जी की रथयात्रा में शामिल होते हैं।
अखण्ड सुहाग की कामना का पर्व - वटसावित्री अमावस्या
वटसावित्री का पर्व विवाहिताओं के लिए अखण्ड सुहाग की कामना का द्योतक है। सीता और सावित्री की संस्कृति वाले देश में वट अमावस्या स्त्रियों के अदम्य साहस को भी दर्शाती है।
नमामि पुण्य-निर्झरिणी
गुप्तकालीन स्थापत्य कला में गंगा-यमुना अपने कर (हाथ) में पूर्ण कुम्भ के स्थान पर चँवर के साथ प्रदर्शित हैं। इन नदी मूर्तियों के चामरधारी मानवीय स्वरूप की कल्पना कुमारसम्भव में भी प्राप्य है।
न्याय के पोषक हैं शनिदेव
शनि, न्याय के देव हैं, लेकिन उनके बारे में कई तरह की शंकाएँ मन में रहती हैं। उन्हें 'क्रूर' तक कहा जाता है।
सारनाथ दिखाता है महात्मा बुद्ध का सामाजिक पहलू
जीवन में दो अतियाँ हैं: एक इन्द्रिय सुख और विलासिता की अति और दूसरी जीवन से विरक्ति एवं आत्मदमन की अति। तुम्हें इन दोनों ही अतियों से बचकर मध्यम मार्ग का चुनाव करना है।
मेरी लाठी मेरे सिर पर ही बरसी
सफल होने पर मनुष्य की मेहनत जिम्मेदार होती है और असफल होने पर वह भाग्य को जिम्मेदार मानता है जबकि भाग्य कर्म का ही परिणाम है।
सोलह संस्कारों की वैज्ञानिकता और माहात्म्य
सनातन हिन्दू धर्म एक शाश्वत और प्राचीन धर्म है। यह एक वैज्ञानिक और विज्ञान आधारित धर्म होने के कारण निरन्तर विकास कर रहा है।
जानें शनि-मंगल-केतु कैसे निर्मित करते हैं तकनीकी गुरु योग!
जब मंगल, शनि एवं केतु का सम्बन्ध आपस में बन रहा हो, दृष्टि से देख रहे हों अथवा मंगल शनि की राशि में हो और शनि मंगल की राशि को देख रहे हों और केतु शनि पर अथवा मंगल पर अपनी दृष्टि डाल रहा हो, तब यह योग निर्मित होता है।
एक रहस्यमयी दशा: शुक्र में शनि की दशा और शनि में शुक्र की दशा!
चन्द्रमा की लग्न कर्क में तथा सूर्य की लग्न सिंह में शुक्र और शनि केन्द्रेश होते हैं तथा अपनी दशा-अन्तर्दशा में विशेष उन्नतिकारक नहीं होते। सामान्यतः इनका विपरीत फल प्राप्त होता है।
श्रीगुरुगीता (भाग-18)
सद्गुरु के निवास से न केवल वह आश्रम या पीठ ही शुद्ध या पवित्र होती है, वरन् वह सम्पूर्ण प्रदेश भी पवित्र और ऊर्जावान् बन जाता है।
और उस योगी ने मृत चिड़िया को जीवित कर दिया....
मन और मस्तिष्क की शक्ति अपरम्पार है। मन की गति अति तीव्र होती है; प्रकाश की गति से भी तीव्र।
अन्य ग्रहों पर जीवन की सम्भावना!
आकाशगंगा
शुक्र और शनि के फल
कैसे करें सटीक फलादेश (भाग-189) कुम्भ लग्न के अष्टम भाव में स्थित
शंकर के अंशावतार आदि गुरु शंकराचार्य
आद्यगुरु श्री शंकराचार्य जयन्ती (25 अप्रैल, 2023) पर विशेष
पुण्यपर्व अक्षया तृतीया शास्त्रीय और लौकिक महत्त्व
हमारे देश के पर्वों और उत्सवों में से कुछ तो ऋतु पर्व हैं, जिनमें नई फसल पकने का आमोदप्रमोद और ऋतु परिवर्तन का उल्लास रचा-बसा होता है।
भगवान् विष्णु के आवेशावतार भगवान् परशुराम
सप्तम भाव में सूर्य भी उच्च राशिगत होकर स्थित है। इस प्रकार चारों ही केन्द्र भाव में उच्चस्थ ग्रह हैं। इस ग्रह स्थिति के फलस्वरूप परशुराम जी की जन्मपत्रिका में कमल नामक श्रेष्ठ योग निर्मित हो रहा है। इन ग्रहों की श्रेष्ठ परिस्थिति के कारण ही परशुराम जी इतने पराक्रमी एवं बलशाली हुए। इन्हीं ग्रह स्थितियों के फलस्वरूप उन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।
छत्रपति शिवाजी सूर्य, शनि और गुरु ने बनाया मराठा सरताज
लग्नेश की लग्न पर दृष्टि तथा गुरु की भी लग्न पर दृष्टि होने से शिवाजी इतने बलिष्ठ तथा पराक्रमी देह वाले और प्रसिद्ध थे। षष्ठेश एवं सप्तमेश शनि के तृतीय भाव में उच्च का होने के कारण शिवाजी ने सभी शत्रुओं का दमन किया। तृतीयेश शुक्र की अपने भाव पर दृष्टि से वे महान् पराक्रमी हुए।
कुण्डली का प्रत्येक भाव कुछ बोलता है
यह स्थान व्यापार और कर्म से जो लाभ होता है, उससे सम्बन्धित है। ठेकेदारी, बड़ा भाई, आभूषण, दामाद, बहू, लाभ, चोट, पिण्डली आदि का विचार किया जाता है।
गुरु-चाण्डाल योग की व्याख्या
गुरु-चाण्डाल योग में विच्छेदात्मक पापग्रह राहु गुरु के नैसर्गिक कारकत्व और शुभ फलों को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है।
कुण्डली में गुरु-केतु के सम्बन्ध से होता है सर्वाधिक विकास
नवग्रहों के परिवार में केतु नौवाँ ग्रह है। यह यद्यपि राहु की तरह छाया ग्रह है, लेकिन इसके स्वतंत्र परिणाम भी अनुभव में आते हैं।
कब और कितना प्रभावी है गुरुचाण्डाल योग?
जीवे सकेतौ यदि वा सराहौ चाण्डालता पापनिरीक्षिते चेत् ।
होलिका दहन शास्त्रीय विधान
ज्योतिष की दृष्टि से होलिका दहन शासक और शासित दोनों को प्रभावित करता है। प्रतिपदा, चतुर्दशी में दिन के समय और भद्रा के समय होलिका दहन करना अनिष्टकारक है। यह सम्पूर्ण राष्ट्र को हानिकारक है।
आरोग्य की देवी शीतला माता
सुरभि महीने में अष्टमी व्रत और पराशक्ति शीतला माता की पूजा-आराधना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। सुरभि महीने में चैत्र तथा वैशाख दोनों महीने आते हैं। ये दोनों महीने बसन्त ऋतु में समाविष्ट हैं।
ऊजाप्रदायक दुर्गापूजा!
इसके विधिविधान से अनुष्ठान करने से लौकिक एवं पारलौकिक सिद्धियाँ मिलती हैं। इसके स्वाध्याय से मनमस्तिष्क ऊर्जावान् होते हैं। इसके बीजमन्त्रों में 'ऐं, क्लीं, हीं, श्रीँ अक्षर आवश्यक हैं। प्रकृति की त्रिगुणात्मक शक्ति (सत, रज और तम) 'दुर्गा' में समाहित हैं। दुर्गा की आराधना से मूलाधार चक्र को शक्ति प्राप्त होती है।