बीपीसीएल के निजीकरण से पहले कुछ जरूरी कदम
Business Standard - Hindi|September 29, 2022
प्रत्यक्ष सब्सिडी अंतरण से खुदरा तेल कीमतों में सुधार पर भी विचार किया जाना चाहिए। इससे प्रक्रिया पारदर्शी होगी और बीपीसीएल का विनिवेश भी अधिक आकर्षक होगा।
ए के भट्टाचार्य

करीब एक पखवाड़ा पहले पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी बीपीसीएल के प्रस्तावित निजीकरण पर अब विचार नहीं किया जा रहा है। पुरी ने मुंबई में एनर्जी टेक्नॉलजी मीट से इतर कहा, 'हम विनिवेश करना चाहते हैं, लेकिन हम ऐसी स्थिति में नहीं रह सकते जहां केवल एक बोली लगाने वाला हो..., फिलहाल इस पर विचार नहीं किया जा रहा है।' जानकारी के मुताबिक इस रुख का समर्थन करते हुए निवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग ने भी कहा है, 'वैश्विक ऊर्जा बाजार में मौजूदा हालात के चलते इसमें रुचि रखने वाले अधिकांश योग्य पक्षों ने बीपीसीएल की मौजूदा विनिवेश प्रक्रिया में भागीदारी में असमर्थता व्यक्त की है।'

इस निर्णय के बाद केंद्र सरकार के लिए 2022-23 का विनिवेश लक्ष्य हासिल करना जहां और मुश्किल हो गया है, वहीं बीपीसीएल में सरकार की 53 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया को स्थगित करने की वजह केवल बाजार के हालात अथवा केवल एक ही बोली लगाने वाले का होना नहीं है। बीपीसीएल के निजीकरण की प्रक्रिया को कठिन बनाने वाली एक और वजह देश के तेल क्षेत्र में मौजूद नीतिगत माहौल भी है। निश्चित तौर पर बीपीसीएल के लिए बोली लगाने वालों की कतार तब तक नहीं लगेगी जब तक कि उन मूल्य नीतियों में सुधार नहीं किया जाता है जो पेट्रोलियम उत्पादों से जुड़ी कंपनियों को संचालित करती हैं। 

याद रहे कि अतीत में कई सरकारों ने पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने का प्रयास किया लेकिन वे प्रयास इस क्षेत्र पर कुछ खास प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे। यहां चिंतित करने वाला पहलू यह है कि उन कदमों से ऐसी धारणा बनी कि तेल कीमतें विनियमित हो गई हैं और अब तेल रिफाइनर उनकी कीमतें तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। परंतु पिछले दो दशक पर करीबी निगाह डालें तो आपको पता चलेगा कि इस मोर्चे पर बहुत कम प्रगति हुई है। तेल कीमतें वैसी ही विनियमित हैं जैसे कि 1970 और 1980 के दशक में अन्य उत्पाद थे।

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