कोरोना महामारी ने हमारे जीने के तौरतरीकों को अस्तव्यस्त कर दिया है। नववर्ष का स्वागत करते हुए हमारे द्वारा यह कामना करना अस्वाभाविक नहीं थी कि हमारे नष्ट हो गये आदर्श एवं संतुलित जीवन के गौरव को हम फिर से प्राप्त करेंगे और फिर एक बार हमारी जीवन-शैली में पूर्ण भारतीयता का सामंजस्य एवं संतुलन स्थापित होगा। किंतु कोरोना के जटिल दौर के बीतने एवं नये साल की अगवानी पर हालात का जायजा लें, हमारे राष्ट्रीय, सामाजिक, पारिवारिक और वैयक्तिक जीवन में जीवन-मूल्य, आर्थिक स्थितियां, व्यापार, रोजगार एवं कार्यक्षमताएं खंड-खंड दृष्टिगोचर होते हैं। कोरोना ने इस दौरान समूची इंसानियत को घुटने के बल बैठने पर मजबूर कर दिया। पूरी दुनिया में अब तक 27 करोड़, 65 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से करीब 54 लाख को अपनी जान गंवानी पड़ी। भारत में भी यह आंकड़ा पांच लाख की ओर बढ़ चला है। भारत इस त्रासदी का शिकार होने वाले शीर्ष पांच देशों में गिना जाता है। कोरोना से न केवल लोगों की जान गई, बल्कि बड़ी संख्या में लोग बदहाली के शिकार भी हुए। हालांकि, इस दौरान सुकून की बात यह रही कि केंद्र और राज्य सरकारों ने महामारी से लड़ने में कोई कोताही नहीं बरती। भारत में बने दो टीकों ने लोगों को इस प्राणलेवा आपदा से निपटने का सामर्थ्य प्रदान किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प के कारण 16 जनवरी से अब तक एक अरब, 40 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं। यही नहीं, आर्थिक विकास दर वापस लौटाने के लिए भी भगीरथी प्रयास हुए, पर महामारी के घाव को भरने में एवं ओमीक्रोन को परास्त करने में काफी समय लगेगा।
बीते वर्ष में आर्थिक असंतुलन के कड़वे चूंट पीने को मजबूर होना पड़ा है। इस दौरान भारत में आर्थिक विषमता की खाई और चौड़ी होती चली गई। भारत में देश की कुल आमदनी का 57 फीसदी हिस्सा शीर्ष 10 फीसदी लोगों की जेबों में गया। आधी आबादी के हिस्से में सिर्फ 13 प्रतिशत कमाई आई। गरीबी की रेखा को मिटाने के जो प्रयत्न पूर्व में हुए, वे पुनः विपन्नता की अंधी खोह में समा गए हैं। दुनिया के गरीब मुल्कों को बहुत तेजी से आत्मनिर्भरता की लड़ाई लड़नी होगी। आने वाले साल यकीनी तौर आर्थिक राष्ट्रवाद के होने वाले हैं।
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भारत विरोधी तत्वों में भरा जहर है दंगों की वजह
यह संयोग ही है कि जिन दिनों य रामनवमी पड़ती है, उन्हीं दिनों मुस्लिम समुदाय का रोजे चल रहे होते हैं। कुछ ऐसा ही संयोग विक्रमी संवत के श्रावण के महीने का भी होता है।
हिन्दू शोभायात्रा पर सुनियोजित हमले
स्वतंत्र भारत में हिन्दू संगठनों द्वारा निकाली गई शोभायात्रा पर पथराव और आगजनी की घटना कई राज्यों और जेएनयू जैसे शैक्षिक संस्थान में भी हुई। पहले राजस्थान उसके बाद मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और झारखंड आदि राज्यों में रामनवमी के अवसर पर जो शोभायात्रा निकाली गई उस पर दंगाइयों द्वारा हमले किए जा रहे हैं। यहां तक कि अब शैक्षणिक संस्थान भी इससे अछूते नहीं रहे। जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में रामनवमी के दिन हिन्दू विद्यार्थियों के पूजा और हवन को बाधित किया गया।
हिंसा परमो धर्मः वालों के लिये निष्कासन कानून जरुरी
सनातन धर्म के अनुयायियों को सताना उन पर जुल्म करना मुस्लिम हमलावरों और मुगल राजाओं की सोच और आदत रही है।
क्यों हिन्दू पर्व हिंसा का शिकार हों ?
रामनवमी एवं हनुमान जयन्ती पर एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों ने जो , हिंसा, नफरत एवं द्वेष को हथियार बनाकर अशांति फैलायी, वह भारत की एकता, अखण्डता एवं भाईचारे की संस्कृति को क्षति पहुंचाने का माध्यम बनी है।
त्यौहारों पर हिंसा का साया
इस समय देश बड़ी विकट स्थिति से गुजर रहा है। एक आम आदमी जो कि इस देश की नींव है उस के लिए जीवन के संघर्ष ही इतने होते हैं कि वो अपनी नौकरी, अपना व्यापार, अपना परिवार, अपने और अपने बच्चों के भविष्य के सपनों से आगे कुछ सोच ही नहीं पाता। वो रोज सुबह उम्मीदों की नाव पर सवार अपने काम पर जाता है और शाम को इस दौड़ती - भागती जिंदगी में थोड़े सुकून की तलाश में घर वापस आता है।
हिन्दू शोभायात्रा के खिलाफ हिंसा एक साजिश
हाल ही में दिल्ली में हुई एक घटना ने भारत में एक बार फिर से सेक्युलरिज्म को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है, जहां हनुमान जयंती के पर्व के दिन कुछ मुस्लिम दंगाइयों ने हिन्दुओं की शोभायात्रा पर पथराव कर दिया लेकिन सवाल यह उठता है कि किसी सभ्य समाज में ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त किया जा सकता है ?
अच्छे खान-पान से बढ़ती है उम्र
खान-पान का मनुष्य के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसको लेकर हाल ही में नॉर्वे में, दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा व प्रभावी अध्ययन किया गया है।
अमन के फरिश्तों का सच
शोभायात्राओं पर हमले का क्रम देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया। जहांगीरपुरी में हनुमान जन्मोत्सव की शोभायात्रा पर भीषण हमला और आगजनी ठीक वैसे ही है, जैसा हम मध्य प्रदेश के खरगोन से लेकर गुजरात के खंभात और राजस्थान के करौली तक में देख चुके हैं। दिल्ली, गुजरात, झारखंड, बंगाल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में हुई इन हिंसक घटनाओं के बीच समानताएं अगर किसी को न दिखती हो, तो उसे 'आंख से अंधा नाम नैनसुख' कह सकते हैं।
'जय श्री राम' कहना और हनुमान चालीसा पाठ अब अपराध ?
कहां हैं सेकुलरवाद, उदारवाद व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ठेकेदार ?
'ऑपरेशन गंगा' एक जटिल मानवीय ऑपरेशन की दास्तान
हाल ही में सकुशल समाप्त हुए ऑपरेशन गंगा को भविष्य में एक ऐसी घटना के रुप में देखा जायेगा जिसमें हमारी सरकार ने मानवीय, जनतांत्रिक, कूटनीतिक और साहस के सभी पैमानों पर खरा उतरते हुए न केवल देश के 22500 नागरिकों को बल्कि 18 अन्य देशों के 147 नागरिकों को भी बरसती मिसाइलों के बीच से सुरक्षित निकाल कर एक नया इतिहास रच दिया।