बाबूजी का असली नाम नरेंद्र कुमार था. वे इलाहाबाद बैंक के बैंक प्रबंधक पद से रिटायर हुए थे. रिटायर होने से पहले वे गीता प्रैस रोड, गांधी नगर, गोरखपुर में बैंक के मुख्यालय में थे. उन्हें 'बाबूजी' का उपनाम तब मिला जब वे अल्फांसो रोड पर बैंक में शुरूशुरू में टेलर (क्लर्क) थे. हालांकि उन के पास बीकौम प्रथम श्रेणी की डिग्री थी लेकिन उन्हें एक उपयुक्त नौकरी नहीं मिली और उन्हें टेलर की नौकरी के लिए समझौता करना पड़ा. वे अपने ग्राहकों, सहकर्मियों और अपने वरिष्ठों व मालिकों के साथ सम्मान व मुसकराहट के साथ व्यवहार करते थे. नौकरी से वे खुश थे.
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तलाक से परहेज नहीं
मुसलिम समाज में तलाक को ले कर हकीकत से ज्यादा हल्ला मचाया गया, आज मुसलिम महिलाएं पढ़लिख रही हैं, अपने अधिकार जान रही हैं.
धर्म और बेवकूफी का शिकार श्रीलंका
श्रीलंका में इन दिनों भारी उथलपुथल मची हुई है, लोग महंगाई से त्रस्त हैं और आम जनजीवन ठप है. सड़कों पर लोगों के भारी प्रदर्शन बता रहे हैं कि श्रीलंका में कुछ भी ठीक नहीं. इस स्थिति का जिम्मेदार चीन को ठहराया जा रहा है, पर जितना जिम्मेदार चीन है उस से कहीं ज्यादा राजपक्षे ब्रदर्स की नीतियां हैं.
सीयूईटी परीक्षा पिछडों पर भारी रभ ऊंचों की चतुराई
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अब दाखिले के लिए 12वीं के अंकों की जगह एंट्रेंस एग्जाम को लागू किया गया है. सतही तौर पर देखने में यह फैसला क्रांतिकारी लग रहा है, पर भीतर से यह विनाशकारी और कुछ को कमाई के अपार अवसर देने की साजिश वाला लग रहा है. इस से विश्वविद्यालयों में दाखिले तो उन्हीं के होंगे, जिन के पास पैसा है अब इस ने शिक्षा को ले कर नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं.
शहरों में गंवार
नए गंवार शहरों में बसे हैं. ये पढ़ेलिखे हैं, खुद को आधुनिक कहते हैं, पर इन के तौरतरीके ऐसे हैं कि गांव का अनपढ़ आदमी भी शरमा जाए. गंवारों की इस पौध का इलाज जरूरी है.
एलोपेसिया ग्रसित महिला का मजाक पड़ा महंगा
एलोपेसिया किसी को भी हो सकता है, लेकिन इस से ग्रसित किसी व्यक्ति का मजाक उड़ाना बिलकुल ठीक नहीं, जैसा औस्कर अवार्ड में देखने को मिला. आइए जानें कि क्या है एलोपेसिया.
खाली घोंसला जब घर छोड कर चले जाएं बच्चे
जमाना बदल रहा है. बच्चे अब घरपरिवार से दूर रह कर अपना कैरियर और जौब तलाशने लगे हैं. इसे समय की मांग भी कहा जा सकता है. ऐसे में घबराए नहीं.
आम आदमी पार्टी सीटें हैं नीति नहीं
आम आदमी पार्टी विकल्प के रूप में भले ही कुछ चुनाव जीत ले लेकिन राजनीतिक विचारधारा के अभाव में उस का लंबे समय तक राजनीति करना आसान नहीं होगा. सामाजिक, आर्थिक व विश्व विचारधारा के अभाव में कोई भी दल न केवल अपने देश बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप नहीं छोड़ पाता है.
'वीकली हाट' हो गई कंटैंट राइटिंग
मीडिया आज पूरी तरह से व्यवसाय का रूप ले चुका है, इस से कंटेंट राइटर की लेखनी ने पैशन की जगह पेशे का रूप ले लिया है. आज लेखक कम, कंटेंट राइटर हर जगह खड़े हैं, जो सहीगलत का नजरिया पेश नहीं कर पाते.
“मैं ऐक्शन और कट के बीच में रहता हूं
प्योर हरियाणवी बोलने वाले मोहित कुमार ऐक्टिंग जगत में कदम रखने से पहले हिंदी नहीं बोल पाते थे, लेकिन अब चीजें ऐसी बदली हैं कि 'सब सतरंगी' शो में वे लखनवी बोली फर्राटे से बोल रहे हैं.
विधानसभा चुनाव 2022 नारे और वादे की जीत
भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे को सामने रख कर चुनाव लड़ा. इस में लोकलुभावन वादे और नारों की भरमार थी. 'आप' के अलावा विपक्ष अपना एजेंडा जनता के सामने रख पाने में असफल रहा. वहीं, नारे और वादे के बल पर चुनाव तो जीते जा सकते हैं पर देश नहीं चलाया जा सकता. देश चलाना एक 'स्टेट क्राफ्ट' है, जिस में भाजपा फेल हुई या पास, यह सवाल सदा खड़ा रहेगा.