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एक दाढ़ी कई अफसाने
दाढ़ी हर कोई रख और बढ़ा सकता है, इस का मैंटेनेंस भी कोई खास ज्यादा नहीं. विद्वान और परिपक्व दिखाने में दाढ़ी मददगार साबित होती है लेकिन कभीकभार यह दिक्कतें भी देती है.
धार्मिक देन निकम्मों की संस्कृति
धर्म की दुकानदारी चलती रहे, इस के लिए तमाम पंडों ने धर्म के नाम पर रहने, खानेपीने, रहनसहन, जन्ममरण, शादी, नौकरी, रोजगार, धंधा, समाज को संचालित करने के असीम अधिकार प्राप्त कर इन्हें वास्तविक जीवन में लागू करवा दिया है, हालांकि, हमारी यह कार्यसंस्कृति महज दिखावटी महानता है. यह और कुछ नहीं, बस, निकम्मों की फौज खड़ी कर रही है.
पैसों पर लटका जीवन
वह 8 साल का था. उस के दोनों पांवों में अचानक लकवा आ गया स्थानीय डाक्टरों को दिखाया गया पर लकवा ऊपर की ओर बढ़ता गया था. धीरेधीरे हाथ चपेट में आ गए. फिर उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया. लकवा और ऊपर बढ़ने लगा. सांस भी बंद होने लगी. फिर आईसीयू में शिफ्ट किया गया और सांस की नली में छेद कर वैंटिलेटर लगा दिया गया.
राजनीति पर सोशल मीडिया का प्रभाव
सोशल मीडिया समाज के एक हिस्से तक सीमित है. यह पूरा समाज नहीं है. फौलोअर्स वोटर नहीं होते. वोटर को अपने क्षेत्र की परेशानियों को देखने के लिए सोशल मीडिया का सहारा नहीं लेना होता. यही वजह है कि प्रभावी दिखने के बाद भी सोशल मीडिया चुनावी जीत नहीं दिला पाता है.
पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
धर्म और राष्ट्रवाद का तड़का लगा कर देशभर में सेठ रामदेव ने पतंजलि को फैलाने का काम किया. अब देश की सर्वोच्च अदालत ने उन की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को कड़ी फटकार लगाई है.
क्या रामधुन से दूर होगी बेरोजगारी
वेकैंसी सिपाही की हो या चपरासी की, इन के लिए योग्यता से अधिक डिग्रीधारक लाइन में लगे होते हैं. इस की वजह बढ़ती बेरोजगारी है. अयोध्या में भले ही राममंदिर बन गया हो, बेरोजगारों के लिए कोई उपाय नहीं किया गया. सरकारी नौकरी के लिए सिपाही भरती जैसी छोटी नौकरी की परीक्षा में पेपर लीक हो रहा है. एक नौकरी को पाने के लिए 4-5 साल लग जाते हैं.
अन्नदाता की पीड़ा और किसान आंदोलन
किसानों की आय दोगुनी करने के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आई थी. आय दोगुनी तो नहीं हुई पर बड़ी संख्या में आज किसान दूसरी बार सड़कों पर आंदोलन करने को मजबूर हो गए हैं. वे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना चाहते हैं परंतु मामला फंसता नजर आ रहा है.
इंडिया ब्लौक क्या ले रहा है आकार
इंडिया ब्लौक ने फीनिक्स पक्षी की तरह अपने पंख दोबारा खोले तो हैं लेकिन उड़ान वह कहां तक कर पाएगा, यह कहना मुश्किल है. जिस पौराणिक माहौल में भाजपा 400 पार का दम भर रही है, लोकतांत्रिक माहौल के तहत विपक्ष उसे कितनी चुनौती दे पाएगा, यह भी अगर मुट्ठीभर सवर्णों को ही तय करना है तो यह चुनाव कतई दूसरे मुद्दों के इर्दगिर्द नहीं होने वाला.
एक कलाकार में कई प्रतिभाएं जन्मजात होती हैं
पुराने समय में फिल्मी परदे पर वही ऐक्टिंग करता था जिस में गाने की कला भी थी. बीच के दौर में प्लेबैक ने कई प्रतिभाओं के गायन कौशल को दबा दिया. सिर्फ उन की ऐक्टिंग को ही तवज्जुह मिली. लेकिन वह दौर एक बार फिर लौट रहा है जहां कलाकार अपनी तमाम कलाओं का प्रदर्शन एकसाथ कर रहे हैं.
हीरोइनों की प्लास्टिक सर्जरी और उन का निखरा रूप
प्लास्टिक सर्जरी से हीरोइनों को खूबसूरत लुक्स मिले हैं और वे अब कामयाब हैं. यही वजह है कि प्लास्टिक सर्जरी का व्यापार बढ़ता जा रहा है. हालांकि, कई बार इस का असर गलत होने पर मृत्यु तक हो सकती है.