महाराष्ट्र काडर के 1983 बैच के आइएएस अधिकारी उपमन्यु चटर्जी संभवतः 80 और 90 के दशक के सर्वोत्कृष्ट सिविल सेवा अधिकारी का प्रतिमान हैं। उन जैसे कई अधिकारी 21वीं सदी में भी देखने को मिले। उपमन्यु चटर्जी ने 'द कॉलेज' (दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज के एल्युमनी इसे इसी नाम से बुलाते हैं) में पढ़ाई की थी। इस कॉलेज के अनेक छात्रों ने सिविल सेवा में जगह बनाई और संस्थान को उत्कृष्ट दर्जा दिलाया। उपमन्यु चटर्जी ने अपने उपन्यास इंग्लिश, अगस्त में प्रचलित मानसिकता को दर्शाया है। उपन्यास का मुख्य पात्र अगस्त्य सेन है। आइएएस की परीक्षा पास करने के बाद उसकी पोस्टिंग छोटे शहर में हो जाती है। यह शहर 'देश के पिछड़े इलाके में एक छोटे से बिंदु' की तरह है। नायक खुद को इस शहर से नहीं जोड़ पाता। शहर की रीति-नीति भी उसे मुश्किल से समझ में आती है।
देश के पिछड़े इलाकों के इन्हीं छोटे बिंदुओं से अब न सिर्फ आइएएस अधिकारी निकल रहे हैं, बल्कि सिविल सेवा परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल कर रहे हैं। मराठवाड़ा क्षेत्र के जालना जिले का शेदगांव ऐसा ही एक छोटा सा बिंदु है, जहां से अब तक का सबसे कम उम्र का आइएएस अधिकारी शेख अंसार अहमद निकला है। अहमद के पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे और मां खेत में मजदूरी करती थीं। अहमद ने 2015 में सिर्फ 21 साल की उम्र में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा पास की थी।
अहमद अपने गृह शहर जैसी ही छोटी जगह, पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले के दिनहाटा में सब डिविजनल अफसर (एसडीओ) पद पर तैनात हैं। वे बड़े आराम से स्थानीय लोगों के साथ बांग्ला में बातें करते हैं। उन्हें अक्सर इस इलाके में पैदल जाते और लोगों को मास्क पहनने का महत्व बताते हुए देखा जा सकता है। दिनहाटा से फोन पर उन्होंने आउटलुक से कहा, "बांग्ला सीखना मेरे लिए मुश्किल नहीं था। यह एक तरह से मराठी और हिंदी का मिश्रण है। मैं लोगों से कहता हूं कि वे अपनी भाषा में ही मुझसे बात करें और मैं उनकी बातें ध्यान से सुनता हूं।"
अहमद अतीत और अब तक आई मुश्किलों का जिक्र करने और खुद को शोषित दिखाने से झिझकते हैं। सच तो यह है कि उनकी पृष्ठभूमि तीन तरह से कमजोर थी। उन्होंने कहा, "एक तो मैं मुसलमान हूं। दूसरे, महाराष्ट्र के एक गरीब जिले से आता हूं और तीसरी बात, मेरा परिवार आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा रहा है। आप जितनी तरह की परेशानियां सोच सकते हैं वह सब मैंने झेली हैं, लेकिन कभी भी सिविल सेवा में आने के लक्ष्य से डिगा नहीं।" अहमद दसवीं कक्षा में थे जब उन्होंने अफसर बनने का सपना देखा था। दरअसल उस समय उनके सबसे प्रिय शिक्षक ने राज्य की सिविल सेवा परीक्षा पास की थी और उनका नाम स्थानीय अखबार में छपा था। अहमद बताते हैं कि उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगता था क्योंकि अपने इर्द-गिर्द फैली नकारात्मकता से बचने का यही एकमात्र रास्ता उन्हें सूझता था।
अहमद के पिता ने सिर्फ पहली कक्षा तक पढ़ाई की थी, इसलिए जब अहमद ने चौथी कक्षा पास कर ली तो उनके पिता को लगा कि बहुत पढ़ाई कर ली। बेटे का नाम स्कूल से कटवाने वाले ही थे कि एक शिक्षक ने यह कहकर उन्हें मनाया की अहमद पढ़ने में काफी तेज है और इसका भविष्य उज्जवल हो सकता है। इसके बाद परिवार ने हमेशा अहमद का साथ दिया। आइएएस अफसरों का एक और हब माने जाने वाले पुणे के फर्गुसन कॉलेज में बेटे को पढ़ाने के लिए परिवार ने अपना छोटा सा घर भी बेच दिया। रोजाना आठ से नौ घंटे पढ़ाई करने वाले अहमद ने पहले प्रयास में ही आइएएस की परीक्षा पास कर ली थी।
इस वर्ष भी हरियाणा के सोनीपत जिले के छोटे से गांव तेवड़ी के किसान परिवार के प्रदीप सिंह मलिक ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के आठ लाख अभ्यर्थियों में पहला स्थान हासिल किया। तीसरा स्थान हासिल करने वाली प्रतिभा वर्मा के माता-पिता उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में स्कूल टीचर हैं। 71वां रैंक हासिल करने वाली यशस्विनी बी. कर्नाटक के चिकमगलूर के निकट बनूर गांव की रहने वाली हैं और उन्होंने सातवीं कक्षा तक कन्नड़ मीडियम स्कूल में ही पढ़ाई की थी। दरअसल, दिल खुश कर देने वाली ऐसी प्रतिभाओं की गूंज समूचे देश के पिछड़े इलाकों में सुनाई दे रही है।
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कोई भी संविधान नहीं बदल सकता
संसद की नई इमारत के प्रस्ताव से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला खासे उत्साहित हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि 2022 में भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर संसद का सत्र नए भवन में आयोजित होगा। उनका कहना है कि किसी भी संसदीय लोकतंत्र में संविधान उसकी आत्मा होती है और कोई भी सरकार उसकी मूल भावना में बदलाव नहीं कर सकती। उन्होंने आउटलुक के एडिटर-इन-चीफ रूबेन बनर्जी और पॉलिटिकल एडिटर भावना विजअरोड़ा से खास बातचीत की है। उसके मुख्य अंश:
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