रियासतों को खत्म हुए भले जमाना हो गया हो, पर लगता है, शाही परंपराएं आज भी जिंदा हैं और फल फूल रही हैं. खासकर राजकोट में, जहां जनवरी के आखिरी सप्ताह में तीन दिन चले भव्य समारोह में गुजरात की पूर्व रियासत राजकोट के राजघराने के 17वें वंशज मांधातासिंह जाडेजा को ताज पहनाया गया. राजतिलक का यह भव्य समारोह 225 एकड़ में फैले रणजीत विलास महल में संपन्न हुआ. राजपुरोहित कौशिक उपाध्याय की अगुआई में 51 ब्राह्मणों ने 51 कलशों में भरे 100 जड़ी बूटियों मिश्रित 51 पवित्र नदियों के जल से अंगरखा और धोती धारण किए मांधातासिंह को रक्षा मंत्रोच्चार के बीच आनुष्ठानिक स्नान करवाया.
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान बॉम्बे प्रेसिडेंसी की काठियावाड़ एजेंसी में इस रियासत की स्थापना 1620 में जाडेजा राजघराने के ठाकोर साहब विभाजी अजोजी ने की थी. ब्रिटिश हुकूमत ने इसे नौ तोपों की सलामी वाली रियासत का दर्जा दिया था. इसके अधिकार क्षेत्र में 64 गांव थे. 1948 में इस रियासत ने भारतीय संघ में विलय स्वीकार किया. 1971 में राजघराने ने अपने विशेषाधिकार भी गंवा दिए, पर राजसी शान शौकत का मोह और भ्रम बना रहा. और मांधातसिंह जाडेजा का राजतिलक उसी पुराने जमाने की याद में शाही सलामी था.
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