नन्हीं-नन्हीं आखें, जिनमें सजते हैं बड़े-बड़े सपने, भले ही देश को अपने सुनहरे भविष्य की तस्वीर नजर आती हो, मगर जब यही आंखें विपरीत परिस्थितियों में श्रम के कठोर यथार्थ की आंच में तपती हुई स्वयं अपने भविष्य की ओर देखती हैं तो वहां अंधेरे के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता। वैसे तो विश्व के प्रायः सभी देशों में किसीन-किसी रूप में बाल-श्रमिक देखे जा सकते हैं, लेकिन यदि इस समस्या को भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के संदर्भ में देखा जाये, तो यहां प्रायः हर क्षेत्र में और विपरीत परिस्थितियों में बाल श्रमिक मजदूरी करते मिल जायेंगे। यह विडम्बना ही कही जायेगी कि जो बच्चे देश के भावी राष्ट्र निर्माता कहे जाते हैं, वे बचपन में ही कमरतोड़ परिश्रम से इस कदर तोड़ दिये जाते हैं कि जवान होकर वे देश की कौन कहे, स्वयं अपना बोझा भी उठने लायक नहीं रह जाते। दरअसल भारत में करोड़ों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें उनकी खेलने-खाने और समुचित शिक्षा प्राप्त करने की उम्र में ही आजीविका की भट्ठी में झोंक दिया गया है।
कस्बाई बाजारों के ढाबों और चाय की दुकानों से लेकर शहरों में स्थित छोटे-मोटे होटलों तक में मासूम बच्चों को कप-प्लेट या जूठे बर्तन धोते, नाक साफ करते, मालिकों की गालियां, मार सहते और ग्राहकों की सेवा में हरदम तत्पर देखा जा सकता है। इन असंगठित क्षेत्रों के अलावा कई संगठित उद्योगों, जैसेजम्मू और कश्मीर और मिर्जापुर के कालीन-उद्योग, केरल, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के बीड़ी-उद्योग, शिवकाशी (तमिलनाडु) के आतिशबाजी एवं माचिस उद्योग, फिरोजाबाद के कांच-उद्योग और पश्चिम बंगाल के हथकरघा उद्योग में बड़ी संख्या में मासूमों की श्रम शक्ति लगी हुई है।
अमानवीय परिस्थितियों में जीवन जीते बाल मजदूर
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सूर्य उपासना का महापर्व मकर संक्रांति
मकर संक्रांति सूर्य उपासना का विशेष पर्व है, इस दिन से सूर्य उत्तरायण होना शुरू होते हैं। इस पर्व को समस्त भारत में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। क्या है इस पर्व का महात्म्य ? आइए लेव से विस्तारपूर्वक जानें।
विश्व भर में नववर्ष का स्वागत
पूरी दुनिया में नए साल के स्वागत की तैयारी कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। सभी देशों में इसे मनाने की अपनी-अपनी परम्पराएं हैं, पूरी दुनिया में नए साल का स्वागत कैसे होता है। आइए जानते हैं।
मेवों में छिपा है सेहत का राज
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हर्ष, उमंग एवं सद्भावना का त्योहार- लोहड़ी
लोहड़ी की बात करते ही आंखों के सामने छा जाती है आग, मूंगफली और रेवड़ी की तस्वीर और साथ ही उभर आता है ढोल और भंगडे का शोर, क्यों? आइये जानते हैं।
भारतीय संविधान का प्रतीक गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस का नाम लेते ही हमारे मन मस्तिष्क में 26 जनवरी को राजपथ पर चलती परेड का दृश्य उभर आता है। जबकि इसका संबध हमारे देश के संविधान से है जो इस दिन पारित हुआ था। क्या है इस संविधान का इतिहास व महत्त्व आइए जानते हैं।
ओशो ने कभी अपने अधिकारों का स्वामित्व नहीं किया
ओशो की शिष्या एवं एडवोकेट, मा प्रेम संगीत नियमित रूप से 'विहा कनेक्शन' और 'ओशो न्यूज' के लिए लिखती हैं। आपको पता ही होगा कि अमेरिका में करीब दस साल तक चले मुकदमे में दिल्ली की 'ओशो वर्ल्ड' नामक संस्था की विजय घोषित करते हुए, न्यायाधीश ने स्पष्ट निर्णय दिया था कि 'ओशो' शब्द को कॉपीराइट कराने का अधिकार किसी को भी नहीं हो सकता है। तब यू.एस.ए. से पराजित होकर ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओ.आई.एफ.) ने नया षड्यंत्र रचायूरोप में कॉपीराइट कराने की कोशिश की। वहां पर 'ओशो लोटस' नामक संस्था ने विरोध में आपत्ति उठाते हुए मुकद्दमा दायर किया। किंतु ओ.आई.एफ.की जीत हुईसत्य की नहीं, झूठ-फरेब की जो कि शीघ्र ही उजागर होने लगे।
ऐसे रहें सर्दियों में भी फिट
सर्दियों के मौसम में जितना खुद को ठंड से बचाना जरूरी है, उतना ही जरूरी है खुद को फिट ररवना भी। कैसे रख सकते हैं आप अपने को इन सर्दियों में फिट? आइए लेख से जानें।
पृथ्वी पर घटा चमत्कार था रजनीशपुरम
अमेरिका के ओरेगोन में बना रजनीशपुरम आज एक बार फिर चर्चा में है, और चर्चा का कारण नेटफ्लिक्स पर आई डॉक्यूमेंट्री 'वाइल्ड-वाइल्ड कंट्री' है। जिसमें ओशो के अमेरिका में बसने और वहां रजनीशपुरम के बनाने और मिटाने की कहानी को दर्शाया गया है। आरिवर रजनीशपुरम था क्या, क्या रजनीशपुरम की हकीकत वही थी जिसे फिल्म में दिरवाया गया या कुछ और? अमेरिका में ओशो को जेल क्यों जाना पड़ा? क्या रजनीशपुरम ओशो की असफलता का कारण था? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आइए ओशो की जुबानी ही जानते हैं।
ठण्डी हवाएं और स्वास्थ्य समस्याए
सर्दी के इस मौसम में हमारा शरीर स्वस्थ रहे उसके लिए कई सावधानियां बरतनी जरूरी है वरना आप रोग की चपेट में आ सकते हैं। ऐसी ही कुछ सावधानियों को आइए जानें लेख से।
शीला की कहानी ओशो की जुबानी
फिल्म 'वाइल्ड-वाइल्ड कंट्री' भले ही ओशो के हर प्रेमी व विरोधी ने न देवी हो पर सवाल देर-सबेर उभर ही गए हैं या भविष्य में उभर ही जाएंगे। सवाल, बवाल न बने, इसके लिए जरूरी है, शीला के बयानों पर ओशो के जवाब।