जब सुहेल की अम्मी उसे डाँट रही थीं, तभी मैंने तय कर लिया था कि उन खण्डहरों की तरफ ज़रूर जाऊँगा। मैंने सुहेल को अपना इरादा बताया तो अम्मी की डाँट के बावजूद वह राज़ी हो गया।
हमारे कस्बे में एक पुराना खण्डहर था। उसके ज़्यादातर कमरों की छतें ढह चुकी थीं। बस कुछेक दीवारें और खम्भे खड़े थे, जिन पर घास उग आई थी। लोग कहते थे कि उस सुनसान में जिन्न रहते हैं। खण्डहर के थोड़ा आगे एक निस्वाँ (यानी लड़कियों का) स्कूल था। स्कूल के पीछे बड़ा-सा तालाब और तालाब से कुछ दूर ऊँचाई पर रेल की पटरियाँ बिछी हुई थीं। ज़ाहिर है, उस तरफ लोगों का आना-जाना कम था। कस्बे की आबादी भी वहीं से खतम हो जाती थी। बस, आसपास कुम्हारों के कुछ छप्पर पड़े कच्चे-पक्के मकान बने थे।
सुबह होते ही स्कूल की लड़कियाँ हरा कुर्ता और सफेद सलवार पहने, सिर पर दुपट्टा कसे स्कूल जाती दिखती थीं। अगर किसी लड़की के सिर से दुपट्टा सरक जाता या बाल दिख जाते तो मौलवी साहब बड़ी डाँट लगाते। एक बार अम्मी को कहते सुना था कि अगर किसी जिन्न की नज़र खुशबू लगाए और खुले बालों वाली लड़की पर पड़ जाए तो वह उसका आशिक हो जाता है। हालाँकि मेरे बड़े भाई के एक दोस्त कहते थे कि खण्डहर में जिन्न वगैरह कुछ नहीं हैं। लोग लड़कियों के स्कूल की तरफ न जाएँ, इसलिए यह अफवाह उड़ाई गई है।
बहरहाल, जो भी हो, हमने तय कर लिया कि खण्डहरों में जाकर पता ज़रूर लगाएँगे कि जिन्न कैसे होते हैं। पर घरवालों की निगाह बचाकर निकल पाना मुश्किल था। इसलिए हमने तय किया कि लू भरी दोपहरी में जब घरवाले कमरों में बन्द होकर सो जाते हैं, तब चलेंगे।
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सफेद गुब्बारे
अचानक से गुब्बारे मेरे चारों ओर मँडराने लगे! दूध जैसे रंग के, नुकीले, मेरे शरीर से भी बड़े। एक गुब्बारा मेरे मुँह में घुस गया। एक-एक करके वो मेरे मुँह में घुसे जा रहे थे। मैं चिल्लाना चाहता था। पर गला गुब्बारों से ठसाठस भर गया। उनकी नोक कई पिनों जैसी चुभ रही थीं।
पृथ्वी पर कुल कितने टी. रेक्स थे?
एक अनुमान है कि क्रेटेशियस काल के दौरान किसी एक समय में लगभग 20,000 टी. रेक्स पृथ्वी पर जीवित थे। यानी किसी एक समय में मध्य प्रदेश के बराबर क्षेत्र में लगभग 3,390 टी. रेक्स घूमते थे।
माल्टे वाले बीड़ा जी
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तकिए में सुरक्षित ड्रेस
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