मूंगफली के हानिकारक रोग एवं नियंत्रण
1. टिक्का या पत्ती धब्बा रोग : यह रोग मुख्यतया सरकोस्पोरा अराचिडीकोला एवं सरकोस्पोरा परसोनेटा कवकों द्वारा होता है। ये दोनों कवक प्रजातियां फसल पर विभिन्न समय में आक्रमण करती हैं। सरकोस्पोरा अराचिडीकोला कवक के आक्रमण से उत्पन्न धब्बे अगेती पर्ण चित्ती तथा सरकोस्पोरा परसोनेटा के आक्रमण से उत्पन्न धब्बे पछेती पर्णचित्ती रोग कहलाते हैं। इस रोग के लक्षण पौधे के भूमि के ऊपर वाले समस्त भागों पर देखे जा सकते हैं। सर्वप्रथम इस रोग के लक्षण पत्तियों पर पीले धब्बे के रूप में प्रकट होते हैं जो धीरे-धीरे तनों पर फैल जाते हैं। दोनों प्रकार के चित्ती रोग सभी पत्तियों पर पाये जाते हैं। लेकिन पछेती पर्णचित्ती, अगेती की अपेक्षा तेजी से फैलती है तथा धब्बों की संख्या भी अधिक होती है। इस रोग के कारण पत्तियां गिर जाती हैं तथा फसल का पकाव जल्दी होने के कारण पैदावार कम होती है।
संक्रमण : रोगजनक के कोनिडियम रोगग्रस्त फसल के अवशेषों या मूंगफली के छिलकों में जीवित रहते हैं। इस कारण यह मृदोड़ रोग की श्रेणी में आता है। इस रोग के संक्रमण के कारण पत्तियों में निर्मित धब्बों में असंख्य कोनिडियम उत्पन्न होते हैं जो हवा व जल द्वारा दूसरे स्वस्थ पौधों तक पहुंचकर उन्हें भी संक्रमित कर देते हैं। कम तापमान व ओंस की बूंदों में यह रोग और भी उग्र रूप धारण कर लेता है। रोग का वार्षिक आवर्तन अथवा अगले वर्ष पुनः रोगजनक फसल की अनुपस्थिति में पौध अवशेषों में गिरी हुई पत्तियों, तनों में सुरक्षित रहता है। संक्रमण पत्तियों में दोनों सतहों पर बाह्य त्वचा में सीधे प्रवेश से एवं खुले हुए रंध्रो के मार्ग से होता है। विभिन्न उर्वरकों एवं सूक्ष्म तत्वों की कमी से भी रोग प्रभावित होता है।
अगेती पर्णचित्ती का आक्रमण पहले होता है जो पत्तियों की ऊपरी सतह पर पहले पीले धब्बे के रूप में प्रकट होती है तथा धीरे-धीरे लाल भूरे रंग के बड़े-बड़े विक्षतों में परिवर्तित हो जाती है। यह पहले पीलापन और फिर मृत भाग दर्शाती है। इन धब्बों के चारों ओर पीले रंग का प्रभाव मंडल होता है जो सिर्फ ऊपरी सतह पर ही दिखाई देता है। इन धब्बों की ऊपरी सतह काली तथा निचली सतह भूरे रंग की दिखाई देती है। गौर से देखने पर ऐसा लगता है कि रोगजनक उस चकते के सभी और बढ़वार की स्थिति में है। मुख्यतया ये गोलाकार होते हैं पर कभी-कभी कोणीय या अनियमित आकार के भी बनते है। पछेती पर्णचित्ती रोग छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होता है तथा धीरे-धीरे इन धब्बों की संख्या पूरी पत्ती पर फैल जाती है। नीचे वाली सतह का रंग कोयले जैसा काला पड़ जाता है। व्यापक अवस्था में ऐसे धब्बे तने पर भी दिखाई देते हैं। रोगी पत्तियां मुरझाकर गिर जाती हैं। अधिक प्रकोप की स्थिति में शतप्रतिशत हानि होती है।
नियंत्रण:
• खेत में बुवाई से पहले गहरी जुताई करें।
• खेतों में फसल के अवशेषों तथा खरपतवारों को जलाकर नष्ट कर दें।
• जल्दी पकने वाली व रोगरोधी किस्मों के बीजों से बुवाई करें।
• बीजों को बुवाई से पूर्व थाईरम/2.20 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
• रोगी पौधों व खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए।
• रोग दिखाई देते ही बाविस्टीन 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा 2 किलो मैन्कोजेप का प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें, इसके बाद 15 दिन के अंतर पर दो बार ऐसे छिड़काव और करें।
• रोग दिखाई देते ही क्लोरोथेलोनील 0.2 प्रतिशत/डाइफेनकोनेजॉल 0.1 प्रतिशत/टेबुकोनेजॉल 0.1 प्रतिशत/हैक्साकोनेजॉल 0.1 प्रतिशत का 2-3 बार छिड़काव 2-3 सप्ताह के अंतराल पर करें।
2. तना गलन रोग : यह एक मृदोढ़ रोग है जो एस्परजीलस नाइजर नामक कवक द्वारा होता है। इस रोग को पदगलन रोग भी कहते हैं।
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किसानी मसलों का शाश्वत समाधान कैसे हो?
आज के भारतीय किसान संघर्ष ने दुनिया के इतिहास में विलक्षण तारीख लिख दी है। सरकार जितनी जोर के साथ इस संघर्ष को कुचलने का प्रयत्न कर रही है, इस संघर्ष की पकड़ उससे भी ज्यादा मजबूत होती जा रही है।
किसान आंदोलन निर्णय की प्रतीक्षा में...
भारत सरकार ने इस वर्ष किसानों के नाम पर तीन कानून लागू किये हैं। पहला किसान सुशक्तिकरण और संरक्षण कीमत असवाशन और खेती सेवा समझौता कानून, दूसरा किसान उत्पादन व्यापार और व्यापार प्रोत्साहन और सुविधा कानून और तीसरा जरूरी वस्तु (संशोधन) अध्यादेश ।
गोभी वर्गीय फसलों में घातक काला सड़न (ब्लैक रोट) रोग व रोकथाम
पौधों की पत्तियों पर अंग्रेजी के अक्षर वी के आकार के हरितहीन, मुरझाए हुए धब्बे बनने शुरू होते हैं, जो बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। इस तरह से पत्ती एक और के किनारे से सूखना और मुड़ना आरंभ कर देती है और बाद में सूखकर मर जाती है। पत्तियों की नसें अंदर से काली पड़ जाती हैं। पौधों के तनों के अंदर भी काले रंग का द्रव्य दिखाई पड़ता है जो कि संक्रमण का कारण बनता है।
आखिर क्यों है खेती कानूनों को लेकर किसानों का विरोध?
इन दिनों में किसान खेती कानूनों के विरूद्ध लड़ाई लड़ रहा है, जो उसके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहे हैं और जिन्होंने उसको शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मिक तौर पर प्रभावित किया है।
पशुपालक की जागरूकता समय की आवश्यकता
पशुपालक गलती करके पीड़ित पशु के मुंह में हाथ डाल बैठते हैं, जिससे वो रेबीज से पीड़ित हो जाते हैं। कुछ पशुओं में पशु धरती पर पांव मार मार के गिरने लगते हैं तथा बेकाबू हो जाते हैं। कुछ पशुओं में अधरंग हो जाता है तथा पशु की मौत भी हो जाती है।
डेयरी पशुओं को खरीदते समय प्रजनन जांच जरूरी क्यों?
कई बार तो ऐसी स्थिति हो जाती है कि पशुपालक मंडी में से पशु को गाभिन समझ कर खरीद कर ले आते हैं, घर में नए आए पशु के पोषण का उचित ध्यान भी रखा जाता है, प्रबंधन में कोई कमी नहीं रखी जाती, पर पशु ब्याहता नहीं है।
कृषि में साइट-विशिष्ट पोषक तत्व प्रबंधन का महत्व
किसान अकसर उर्वरक को एक दर एवं एक समय पर फसलों में डालते हैं जो कि उनकी फसल की जरूरतों के अनुरूप नहीं होता है साइटविशिष्ट पोषक तत्व प्रबंधन उन सिद्धांतों और दिशानिर्देशों को प्रदान करता है
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