राई-सरसों का रबी तिलहनी फसलों में प्रमुख स्थान है । प्रदेश में अनेक प्रयासों के बाद भी राई सरसों क्षेत्रफल में विशेष वृद्धि नहीं हो पा रही है । इसका प्रमुख कारण है कि सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के अन्य महत्वपूर्ण फसलों के क्षेत्रफल का बढ़ना है । क्योंकि ये खाद्य तेल का प्रमुख स्रोत है । तिलहनी फसलों में मूंगफली के बाद इसका मुख्य स्थान है । सरसों एवं राई में प्राय : तेल की प्रतिशत मात्रा 35 48 प्रतिशत होती है । इसके तेल का उपयोग खाने के अतिरिक्त जलाने, शरीर की मालिश, चमड़े उद्योग तथा ग्रीस, साबुन एवं रबड़ के समान के निर्माण में किया जाता है । इसकी खली पशुओं को खिलाने तथा खाद के काम में लाई जाती है । क्योंकि इनकी खली में 5. 2 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1. 7 प्रतिशत फास्फोर्स तथा 1. 1 प्रतिशत पोटाश की मात्रा होती है । सरसों एवं राई के के रूप में खिलाए जाते हैं अर्थात इसके हरे पौधे से लेकर सूखे तने, बीज आदि सभी मानव के लिए उपयोगी है ।
जलवायु : सरसों एवं राई के फसलों के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है । इसकी वानस्पतिक वृद्धि के लिए मृदा में पर्याप्त नमी की आवश्यकता पड़ती है और पकते समय सूखे मौसम की आवश्यकता होती है । पौधों में फूल आने और बीज पड़ने के समय बादल और कोहरे भरे मौसम से फसल जीवन में है और ऐसे पर बुरा प्रभाव पड़ता कीड़ों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है । पाले से उपज को बहुत अधिक हानि पहुंचती है जिससे फलियों के अंदर ही बीज नहीं बनते ।
भूमि : सरसों एवं राई को बलुई दोमट भूमि से लेकर मटियार भूमि में उगाया जा सकता है ।
सरसों एवं राई की उन्नतशील खेती और किस्में :
पसा कल्याणी : यह किस्म 130 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है । 1 हैक से लगभग 13 15 क्विंटल पैदावार मिल जाती है ।
वी. एस. : इसकी फसल 120-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है और प्रत्येक पौधों में 8-10 शाखाएं होती हैं । 1 हैक से लगभग 12-15 क्विंटल पैदावार मिल जाती है ।
वी. एस. एच : यह किस्म लगभग 130-140 दिन में पककर तैयार हो जाती है इसके दाने मध्यम आकार के भूरे रंग के होते हैं । 1 हैक से लगभग 16-20 क्विंटल पैदावार मिल जाती है ।
टाइप 42 : यह किस्म 125-130 दिन पककर तैयार हो जाती है । इसके दाने मध्यम आकार के पीले रंग के होते हैं । 1 हैक से लगभग 12-15 क्विंटल पैदावार मिल जाती है । में लगभग 135 145 दिन टाइप 151 : यह पकती है । इसके दाने आकार में बड़े होते हैं । 1 हैक से लगभग 13 15 क्विंटल पैदावार मिल जाती है । इस किस्म को गेहूं और जौ के साथ मिलवा फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है ।
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