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समय के विरुद्ध – Alle problemer

सुरेश स्वप्निल की कविताओं में बदलते समय का प्रभाव भी है और समय के साथ न बदल पाई अडिग निजता भी। वे निजता और प्रतिबद्धता के बीच के कवि थे और कवि होने के साथ - साथ एक नाटककार और नाट्य निर्देशक भी थे। अपनी शुरुआत में वे एक बेहद उत्साही नौजवान थे। उस दौर के नौजवान, जब भारत में प्रगतिशील - जनवादी और क्रान्तिकारी शक्तियाँ उफान पर थी एक साथ कई मोर्चे पर सक्रिय थे, सुरेश भी उस आंदोलन में पूरे होसले के साथ कूद पड़े और उनकी सक्रियता सिर्फ लेखन तक सीमित नहीं थी उन्होंने एक के बाद एक चार नाटक लिखे और उन्हें मंचित करने के लिए एक नाट्यदल का भी गठन किया। वे लोगों से जुड़ते भी जा रहे थे और लोगों को जोड़ते भी जा रहे थे। उनके लिखे नाटकों का मध्यप्रदेश के कई शहरों में मंचन हुआ। अपनी इन उपलब्धियों के आधार पर वे चाहते तो एक नाटककार या एक नाट्य निर्देशक के रूप में करियर बना सकते थे, लेकिन उनकी मूल प्रकृति कैरियरिज्म के खिलाफ थी।

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