साल के अंत में वरिष्ठ कथाकार संजीव को मुझे पहचानो उपन्यास पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिलना महत्वपूर्ण घटना रही। वैसे, पिछले कुछ वर्षों से साहित्य की दुनिया में गहमागहमी बहुत बढ़ गई है। फेस्टिवल, गोष्ठियों, डिजिटल मंचों की गतिविधियों और पुरस्कार समारोहों की मानो बाढ़ आ गई है। पुस्तक प्रकाशन जगत का भी विस्तार हुआ है। हर साल छपने वाली किताबों की संख्या में भी पहले से काफी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इस भीड़-भाड़ और गहमा-गहमी में हिंदी पुस्तकों पर बातें न के बराबर होती हैं। अच्छी और महत्वपूर्ण किताबों पर लोगों का ध्यान कम जा रहा है।
हर साल की तरह इस बार भी हिंदी साहित्य में हर विधा में कई किताबें आईं। कुछ किताबों पर में अधिक चर्चा हुई, तो कुछ किताबों पर लोगों का ध्यान उतना नहीं गया। नए लेखकों की भी काफी किताबें आईं, जिनमें लेखिकाओं की किताबों की संख्या अधिक है। अगर इस वर्ष को स्त्री-लेखन वर्ष कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कविता, कहानी, उपन्यास और आलोचना में स्त्री रचनाकारों का बोलबाला रहा। वर्ष भर की चुनी हुई किताबों पर चर्चा करना मुश्किल काम है क्योंकि चयन की एक सीमा होती है। इसलिए संभव है इसमें कुछ नाम छूट जाएं या नजर से ओझल हो जाएं।
इस वर्ष करीब 16 कवयित्रियों के कविता संग्रह आए और 20 से अधिक लेखिकाओं के उपन्यास और करीब दस कहानी संग्रह आए। युवा कवि देवेश पथ सारिया को 'नूह की नाव' पर भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिला। वरिष्ठ लेखिका उषा प्रियंवदा से लेकर मृदुला गर्ग, उषा किरण खान, सूर्य बाला, अनामिका, अलका सरावगी, अल्पना मिश्र, जयंती रंगनाथन, गरिमा श्रीवास्तव, सुजाता, सुलोचना वर्मा, लवली गोस्वामी, रीता दास राम, अंजू शर्मा की कृतियां चर्चा में रहीं। रोहिणी अग्रवाल, लीना मल्होत्रा, अनुराधा सिंह, बाबुषा कोहली, रश्मि भारद्वाज, विपिन चौधरी, ज्योति चावला, प्रिया वर्मा और नेहा नरुका के कविता संग्रह भी आए।
この記事は Outlook Hindi の January 22, 2024 版に掲載されています。
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
आजाद तवायफ तराना
तवायफों पर आई नई वेबसीरीज हीरामंडी ने फिर कोठेवालियों और देवदासियों के साथ हिंदुस्तानी सिनेमा के रिश्तों की याद दिलाई
अगला द्रोण कौन
टीम इंडिया में अर्जुन तो बहुत, उन्हीं को संवारने के लिए एक ऐसे कोच की तलाश, जो टीम को तकनीकी-मानसिक मजबूती दे सके
ममता दीदी की दुखती रग
इस चुनाव में अपनी पार्टी के नेताओं का भ्रष्टाचार ही ममता की सबसे बड़ी चुनौती
हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
तीसरी बारी क्यों
विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार और संविधान बदलने तथा आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर देश की जनता को गुमराह नहीं कर सकता
क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा