इन दिनों क्रिकेट विश्व कप में भारतीय टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी सुर्खियों में हैं। आज हर कोई उनकी कलाई, गति, स्विंग, सीम और कला की बात कर रहा है। लेकिन गेंद के इस जादूगर के संघर्ष, असफलताओं, मेहनत और संकल्प की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। संसाधनों के अभाव में क्रिकेटर बनने के अपने सपनों को जीनेे वाले तौसीफ अली का बेटा, आज विश्व कप में भारत का श्रेष्ठ गेंदबाज बन गया है। मोहम्मद शमी खिलाड़ी से पहले एक ‘तलाकशुदा’ पति, एक पिता और खासकर एक बेटे की कहानी है।
आज हर कोई मोहम्मद शमी की शोहरत, उन्हें मिल रही चमक-धमक से प्रभावित है। लेकिन यह शोहरत बेनामी के लंबे दौर के बाद नसीब हुई है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्मे मोहम्मद शमी घरेलू क्रिकेट में बंगाल से खेलते हैं। दरअसल, शमी का क्रिकेटर बनने का सपना, उनसे पहले उनके पिता तौसीफ अली की दूरदर्शी आंखों ने देखा था। वह पिता, जो एक जमाने में तेज गेंदबाजी का शौक और हुनर रखते थे। जिनका हुनर घर-परिवार और तमाम जिम्मेदारियों के बीच दबकर रह गया। तौसीफ ने अपने बेटे में इस हुनर की चमक देखी तो मानो दिल बाग-बाग हो उठा। जब शमी की उम्र 15 साल थी, तब उनके पिता उनकी गेंदबाजी से प्रभावित होकर मुरादाबाद के एक क्रिकेट कोच के पास लेकर गए। शमी की पेस और लाइन लेंथ ने कोच को आश्चर्यचकित तो किया लेकिन प्रतिस्पर्धा ऐसी थी कि उन्हें उत्तर प्रदेश की अंडर-19 टीम में जगह नहीं मिली।
ऐसे में कोच की सलाह को सर्वोपरि मानकर और अधिक देरी ना करते हुए तौसीफ अली, शमी को कोलकाता ले गए। यहां शमी ने डलहौजी क्लब के लिए खेलना शुरू किया। इसी दौरान, बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के एक पूर्व पदाधिकारी उनकी गेंदबाजी के फैन बन गए, जिसके बाद उन्होंने शमी को मोहन बागान क्लब भेज दिया। यहां प्रिंस ऑफ कोलकाता, सौरभ गांगुली ने शमी को गेंद फेंकते हुए देखा और बाद में उन्हीं की सिफारिश पर शमी की जगह बंगाल की रणजी टीम में बन गई।
この記事は Outlook Hindi の November 27, 2023 版に掲載されています。
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