एक बार फिर नीतीश
India Today Hindi|February 14, 2024
नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदलकर बिहार में भाजपा के साथ सरकार बना ली है. लेकिन क्या यह उनका एक और मास्टरस्ट्रोक है या फिर वे अपना रास्ता भटक गए हैं
पुष्यमित्र
एक बार फिर नीतीश

नवरी की 28 तारीख को शपथ ग्रहण के बाद नीतीश कुमार ने मीडिया से कहा, "बिहार के हित में हम काम करते हैं, इसी काम को अब आगे बढ़ाएंगे, बाकी सब कुछ नहीं.'' इस 'बाकी सब कुछ नहीं' का एक अर्थ तो इंडिया गठबंधन से मुक्ति का था, मगर साथ ही उन्होंने यह संकेत भी दिया कि अब उनका कार्यक्षेत्र बिहार तक ही सीमित रहेगा.

डेढ़ साल पहले इसी तरह जब भाजपा को छोड़कर वे महागठबंधन के साथ सरकार बनाने जा रहे थे तो उनके समर्थकों ने नारा लगाया था, “देश का पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो." महज एक महीने पहले दिल्ली में इंडिया गठबंधन की बैठक के वक्त भी समर्थकों ने पोस्टर लगाया था कि 'अगर इंडिया गठबंधन को जीत चाहिए तो चेहरा नीतीश चाहिए'. अब उनके इस्तीफे और शपथ ग्रहण के बाद, उनके किसी समर्थक ने ऐसा नारा नहीं लगाया.

यह वाजिब भी था, क्योंकि अब वे जिस एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं, उसमें पीएम पद को लेकर कोई भ्रम नहीं है. मगर यह बड़ा सवाल है कि क्या सचमुच नीतीश की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं का अंत हो गया है? क्या वे आगे कभी राष्ट्रीय राजनीति में जाना नहीं चाहेंगे? बिहार की राजनीति तक ही खुद को केंद्रित रखेंगे?

पीएम मटीरियल कहलाने लगे थे नीतीश

वह साल 2013 था, जब नीतीश की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पहली दफा जगजाहिर हुई. उस साल जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम प्रत्याशी घोषित किया तो नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था. उस वक्त नीतीश ने कहा था, "हमने कोई विश्वासघात नहीं किया. धोखा तो भाजपा ने अपने नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के साथ किया है. उसने अपने लौह पुरुष आडवाणी को जंग लगने के लिए छोड़ दिया है." जून, 2013 में जो उनका नाता भाजपा से टूटा वह चार साल बाद जुलाई, 2017 में ही जुड़ा.

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