हाल ही में स्वरा भास्कर से उन के घर पर मुलाकात होने पर हम ने उन के अब तक के कैरियर पर लंबी बातचीत की. पेश हैं, उसी के खास अंश :
साल 2010 से ले कर साल 2022 तक के अपने 12 साल के फिल्मी कैरियर को आप किस तरह से देखती हैं?
12 साल का काफी लंबा समय होता है. इस दौरान फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का मेरा जो अनुभव रहा, उस में जद्दोजेहद भी है, खुशी भी है, दुख भी हुआ है. हार और जीत भी हुई है. दर्शकों से बहुत प्रेम और स्नेह भी मिला है, लेकिन सोशल मीडिया पर एक खास तरह की ट्रोलिंग भी मेरे साथ कुछ ज्यादा ही हुई है.
आप की बैकग्राउंड फिल्मों से नहीं है, तो यह बैकग्राउंड किस तरह फिल्मों में काम करते हुए आप की मदद करती रही?
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले मैं ने साहित्य में बीए किया था. मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी से मास्टर की डिगरी ले चुकी थी. जेएनयू से समाजशास्त्र में मास्टर कर चुकी थी.
पढ़ाई करने से जो आत्मविश्वास पैदा होता है, वह आत्मविश्वास मेरे अंदर था. मेरे मातापिता के साथ मेरा काफी करीबी का रिश्ता है. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे पैरेंट्स के साथ दोस्ती का भाव आने लगा.
सच कहूं तो मैं एक आम लड़की थी, जो अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी कर के मुंबई आई थी. उस समय मुझे फैशन का भी कोई इल्म नहीं था. लेकिन तब से ले कर आज तक मैं ने तय कर रखा है कि मुझे ज्यादा काम नहीं करना है, पर अपनी पसंद का काम करना है.
क्या आप मानती हैं कि छोटे शहरों से आने वाले कलाकार पैसे कमाने के दबाव में कुछ भी काम कर लेते हैं?
हमारे जैसे गैरफिल्मी परिवार से आने वाले कलाकारों के लिए पैसे का संकट अहम मुद्दा होता है. फिल्म इंडस्ट्री में शुरुआती दौर में जो जरूरतें होती हैं खासकर लड़की के लिए, वे काफी गंभीर हैं.
मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं, क्योंकि लड़कों को मेकअप व हेयर स्टाइल वगैरह ज्यादा नहीं करना पड़ता, पर लड़कियों के लिए हर आडिशन के समय मेकअप वगैरह कराना होता है.
この記事は Saras Salil - Hindi の November Second 2022 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、8,500 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です ? サインイン
この記事は Saras Salil - Hindi の November Second 2022 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、8,500 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です? サインイン
भोजपुरी सिनेमा की टूटती जोड़ियां
भोजपुरी सिनेमा में यह बात जगजाहिर है कि हीरोइनों का कैरियर केवल भोजपुरी ऐक्टरों के बलबूते ही चलता रहा है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में भोजपुरी के टौप ऐक्टरों के हिसाब से ही फिल्मों में हीरोइनों को कास्ट किया जाता है.
गुंजन जोशी तो 'फाड़' निकले
\"दिल्ली के नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ऐक्टिंग की ट्रेनिंग ले कर आया तो था ऐक्टर बनने, पर बन गया फिल्म स्टोरी राइटर. इस फील्ड में भी मुझे दर्शकों और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का प्यार मिला, क्योंकि मेरा शौक एक आर्टिस्ट बनना ही था, जिस में राइटिंग, डायरैक्शन, ऐक्टिंग सब शामिल रहा है. मेरे आदर्श गुरुदत्त हैं, क्योंकि उन्होंने लेखन से ले कर अभिनय तक सब किया और दोनों में कामयाब रहे,\" यह कहना है गुंजन जोशी का.
सैक्स रोगों की अनदेखी न करें
सैक्स से जुड़े रोग आदमी और औरत दोनों में सैक्स के प्रति अरुचि बढ़ाते हैं. इस के साथ ही ये शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह की परेशानियों को भी बढ़ाते हैं.
एक थप्पड़ की कीमत
वैसे तो रवि अपने एकलौते बेटे सोहम को प्यार करता था, पर जबतब उसे थप्पड़ भी मार देता था. एक दिन उस ने फिर वही सब दोहराया, लेकिन यह थप्पड़ उस पर ही भारी पड़ गया. लेकिन कैसे?
वर्मा साहब गए पानी में
वर्मा साहब की रिटायरमैंट गाजेबाजे के साथ हुई. घर पर दावत भी दी गई, पर उस के बाद उन की पत्नी ने ऐसा बम फोड़ा कि वर्मा साहब के कानों तले की जमीन खिसक गई...
नाजायज संबंध औनलाइन ज्यादा महफूज
सदियों से मर्दऔरतों में नाजायज संबंध बनते आए हैं. अब तो इस तरह के एप आ गए हैं, जहां औनलाइन डेटिंग की जा सकती है. इसे एक सुरक्षित तरीका बताया जाता है. क्या वाकई में ऐसा है?
कत्ल करने से पीछे नहीं हट रही पत्नियां
एक पारिवारिक झगड़े के मसले पर फैसला देते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की है कि \"बीते डेढ़ दशक में प्रेम प्रसंगों के चलते होने वाली हत्याओं की दर बढ़ी है, जिस से समाज पर बुरा असर पड़ा है. इस पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है.'
आसाराम का ढहता साम्राज्य
आसाराम के संदर्भ में आज का समय हमेशा याद रखने लायक हो गया है, क्योंकि धर्म के नाम पर अगर कोई यह समझेगा कि वह देश की जनता और कानून को ठेंगा बताता रहेगा, तो उस की हालत भी आसाराम बापू जैसी होनी तय है.
अडाणीजी यह राष्ट्रवाद क्या है ?
जिस तरह भारत के बड़े रुपएपैसे वाले, चाहे अडाणी हों या अंबानी की जायदाद बढ़ती चली जा रही है और दुनिया के सब से बड़े पूंजीपतियों की गिनती में इन को शुमार किया जाने लगा है, उस से यह संकेत मिलने लगा था कि कहीं न कहीं तो दो और दो पांच है.
सोशल मीडिया: 'पठान' के बहाने नफरती ट्रैंड का चलन
सुनामी चाहे कोई समुद्र उगले या कोई फिल्म, ज्वार का जोश ठंडा होने पर ही पता चलता है कि तबाही किस हद तक की थी. कुछ ऐसा ही महसूस हुआ फिल्म 'पठान' को ले कर.