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विशालकाय मंदिरों में आज भी सजीव है चोल राजवंश की महिमा
Dainik Bhaskar Chhatarpur
|November 02, 2025
छ वर्ष पहले मणिरत्नम ने चोल साम्राज्य पर आधारित 'पोन्त्रियिन सेलवन' नामक दो फिल्में बनाई थीं। भव्य सेट, प्रभावशाली दृश्य और समीक्षकों की प्रशंसा के बावजूद अधिकांश गैर-तमिल दर्शक उनसे जुड़ नहीं पाए। कारण सरल था- वे चोलों के गौरवशाली इतिहास से अपरिचित थे। इसलिए दर्शकों का फिल्म से भावनात्मक जुड़ाव बहुत कम रहा।
वास्तव में चोल राजवंश ने भारतीय धार्मिक और स्थापत्य इतिहास में एक ऐसी भूमिका निभाई जिसने हिंदू मंदिरों की परंपरा को नया अर्थ और नई ऊंचाई दी। उन्होंने मंदिरों को न केवल आस्था का केंद्र बनाया, बल्कि उन्हें राजसत्ता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी बना दिया।
लगभग 1500 वर्ष पहले प्रारंभिक हिंदू मंदिर राजाओं द्वारा नहीं बनाए गए थे। ये मंदिर अधिकतर बौद्ध स्तूपों की भांति ईंटों के बने छोटे ढांचे थे, जैसे 5वीं सदी में कानपुर के निकट भीतरगांव का मंदिर। तब उनका उद्देश्य बौद्ध स्थापत्य की बराबरी करना था। धीरे-धीरे जब हिंदू राजवंशों का उदय हुआ तो देवताओं की मूर्तियां पत्थर की गुफाओं में उकेरी जाने लगीं, जैसे गुप्तकालीन उदयगिरि की गुफाएं, कलचुरीकालीन एलीफेंटा की गुफाएं और चालुक्यकालीन बादामी के शैलमंदिर।
प्रारंभिक मंदिरों की छतें सपाट हुआ करती थीं। फिर 7वीं सदी में तमिल क्षेत्र के पल्लवों ने शिवजी को समर्पित तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर।
यह कहानी Dainik Bhaskar Chhatarpur के November 02, 2025 संस्करण से ली गई है।
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