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इस अंक में

"योगः वेदात् प्रसिद्धयति:" की उक्ति प्रसिद्ध है। उसके आधार पर यह कहने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि ^योगं वेदात् प्रसिद्धयति* अर्थात् वेद से योग प्रमाणित होता है। योग का सामान्य अर्थ है - जोड़।
यज्ञ फलदायिनी क्रिया है। उसका फल यजमान को ही नहीं मिलता - सबको मिलता है। इसलिए याज्ञवल्क्य ने कहा है कि अयं तु परमो धर्मः यदयोजेन आत्म दर्शनम्। सभी प्राणियों में आत्म दर्शन करना परम धर्म है। सब अपने हैं। इसलिए यज्ञ से जो मिला उसको सब में बराबर बाँट दिया जाए। यही भक्ति है। इस तरह जीवेम] जयेम] यजेम और भजेम से हमारा जीवन बनता हैं। इनका योग ही सच्चा योग है।
Ref : 1) http://kb.vkendra.org 2) http://www.vrmvk.org

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विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की सांस्कृतिक मासिक हिन्दी पत्रिका "केन्द्र भारती"

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