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Kendra Bharati - केन्द्र भारती - May 2015

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इस अंक में

केन्द्र भारती : मई २०१५ : संपादकीय : Kendra Bharati : May 2015

ब्रह्माण्ड का कण-कण गतिमान है | प्रकृति भी अनवरत अपना कार्य कर रही है | शरीर के समस्त अवयव भी चुपचाप अपना धर्म यानी कर्म निभा रहे हैं | हमारा हृदय निरंतर धड़क रहा है | दो धडकनों के बीच का समय ही उसका विश्राम है, बहुत लम्बा यानी स्थायी विश्राम जीवन की विदाई भी है | बिना श्रम के कोई भी सृजन संभव नहीं है | गति में ही जीवन है और इसके लिए मति का श्रमशील बने रहना जरूरी है | जड़ और चेतन के समस्त निखार के पीछे श्रम का ही परिश्रम है | पाषाण युग से लेकर आधुनिक युग की कहानी का महानायक भी श्रम ही है |

श्रम और विश्राम के महत्त्व को समझने वाले, परिग्रह की अति से बचते हुए स्वस्थ, सम्पन्न और सुखी रहकर परिवार, समाज और देश के सर्वांगीण विकास में सहयोगी बनते हैं | भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति रही है- कर्म को योग मानते हुए कर्मयोगी बनने का आह्वान करती है और दान में श्रमदान को श्रेष्ठ मानती है | श्रम को तपस्या मानते हुए, इसे पूजा भी माना गया है | श्रम के महत्व को समझते हुए हमारा कृषक और श्रमिक वर्ग विपरीत परिस्थितियों में भी पल-प्रतिपल जुटा ही रहता है...फिर भी, 'श्रम-दिवस' के इस अंतर्राष्ट्रीय अवसर पर , हम करें - श्रम को प्रणाम

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विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की सांस्कृतिक मासिक हिन्दी पत्रिका "केन्द्र भारती"

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