श्रीकृष्ण के चरणों में युधिष्ठिर ने निवेदन किया : ‘‘हे भगवन् ! पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी कौन-सी है और उसकी विधि क्या है?"
श्रीकृष्ण ने कहा: "युधिष्ठिर ! पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष में कमला (पद्मिनी) एकादशी होती है। पद्मिनी एकादशी अनेक पुण्यों को देनेवाली है। इसके व्रत से भगवान पद्मनाभ प्रसन्न होते हैं, पाप नष्ट होते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
दशमी और एकादशी के दिन शहद आदि का उपयोग न करे। दशमी की रात्रि को हलका भोजन करना चाहिए, पराया अन्न नहीं लेना चाहिए। नीच कर्म का त्याग करे। हो सके तो धरती पर ही सादा बिस्तर लगाकर सोये। ज्यादा गद्दे-तकिये और विलास की जगह का त्याग करे। ब्रह्मचर्य का पालन करे। एकादशी को प्रातः उठकर संकल्प करे कि 'भगवान हरि में मेरी प्रीति हो, मेरा मनुष्य-जन्म सफल हो, मेरे पाप-ताप मिटें। यह एकादशी का व्रत सुसम्पन्न करने में भगवान मेरी सहायता करें।'
हो सके तो स्नान के समय गंगा आदि तीर्थों की शुद्ध मिट्टी शरीर पर मलते हुए प्रार्थना करे : 'हे भूमि देवी ! हे जीवों पर कृपा बरसानेवाली धरती माता ! मेरे रोमकूपों को तू निर्दोष बना, आरोग्यता दे और मेरे चित्त को भक्ति प्रदान कर।' फिर रगड़-रगड़कर नहाये। (मुलतानी मिट्टी * अथवा अनाज के उबटन (सप्तधान्य उबटन *) आदि से नहाये तो वह भी अच्छा है। चरबीवाले साबुन का उपयोग न करे ।) नहा-धोकर भगवान की धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्पों आदि से पूजा करे, आरती करे फिर हर्ष मनाये, नाचे-गाये, जप करे।"
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