आत्मसाक्षात्कार दिवस पर पूज्य बापूजी का मंगलमय संदेश
Rishi Prasad Hindi|November 2022
करना और पाना है माया, करना-पाना जहाँ से गुजर जाता है वह है आत्मानुभव।
आत्मसाक्षात्कार दिवस पर पूज्य बापूजी का मंगलमय संदेश

...तो सारी दौड़ें समाप्त हो जाती हैं एवो दि देखाड, व्हाला ! एवो दि उगाड !! देखुं तारुं रूप बधे, एवो दि देखाड !! भूलावी हुं मारूं हुं ने तारामां डूबाड...

'हे प्यारे ! ऐसा दिन दिखा, ऐसे दिन का उदय कर कि मैं सबमें तेरा ही रूप देखूँ । कल्पित मैं-मेरे को भुला के मुझको तुझमें डुबा दे।'

हे परमेश्वर ! हे देवेश्वर ! हे विश्वेश्वर ! बहुत हो गया !... न जाने कितनी माताएँ बदलीं, कितने पिता बदले, कितने पति बदले, पत्नियाँ बदलीं, शरीर बदले... हे अबदल देव ! तुझमें जग जायें, बस हो गया... । तू तो जगाने के लिए अवसर देता ही है। अभागी इन्द्रियाँ, अभागे विषय, अभागे आकर्षण साधन में असाधन करा के देर करवा रहे हैं, बाकी लगातार तुझे पाने का साधन हो तो दिल्ली दूर नहीं !... दिल्ली तो थोड़ीबहुत दूर होगी परंतु वह दिलबर तो थोड़ा भी दूर नहीं है बाबा ! दिलबर दूर नहीं, दुर्लभ नहीं, परे नहीं, पराया नहीं, अपना-आपा है।

लाख चौरासी के चक्कर से थका, खोली कमर।

अब रहा आराम पाना, काम क्या बाकी रहा ॥

लग गया पूरा निशाना, काम क्या बाकी रहा।

जानना था सोई जाना, काम क्या बाकी रहा ॥

देह के प्रारब्ध से मिलता है सबको सब कुछ।

नाहक जग को रिझाना, काम क्या बाकी रहा ॥

पहुँचने का स्थान आ जाय तो यातायात के साधन को छोड़ो। तुम अपने घर (अपने-आप ) में आराम करो ना ! 'यह करना है, वह करना है... यह पाना है...' सारी दौड़ें समाप्त हो जाती हैं।

कैसे होते हैं अपने आप में जगे हुए पुरुष ! स तृप्तो भवति । स अमृतो भवति । स तरति लोकांस्तारयति । (नारदभक्तिसूत्र : ४ व ५० )

Esta historia es de la edición November 2022 de Rishi Prasad Hindi.

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