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चारधाम यात्रा की अधूरी है बिना नैमिषारण्य धाम
Jyotish Sagar
|August 2023
सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि वह एक बार चार धाम की यात्रा करे। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में लोग चार धाम की यात्रा पर निकलते हैं। चार धाम यात्रा करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। हालाँकि उत्तरप्रदेश में। एक ऐसा पवित्र तीर्थस्थल है, जहाँ दर्शन नहीं करने पर चारधाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के समीप सीतापुर जनपद में गोमती नदी के किनारे यह पवित्र धार्मिक स्थल है, जिसे हम सब कई नामों से जानते हैं। ये हैं : नैमिषारण्य, नीमसार, नैमिष यज्ञ। नैमिषारण्य तीर्थस्थल अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है।
ऋषियों की तपोस्थली है नैमिषारण्य
नैमिषारण्य सनातन धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह उत्तरप्रदेश में लखनऊ से लगभग 80 कि.मी. दूर सीतापुर जिले में गोमती नदी के तट पर स्थित है। विष्णुपुराण के अनुसार यह बड़ा पवित्र स्थान है। नैमिषारण्य का मार्कण्डेय पुराण में अनेक बार इसका उल्लेख हुआ है, जहाँ 88,000 ऋषियों ने तप किया है। यहीं पर ऋषियो को महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य सूत जी ने महभारत तथा पुराणों की कथाएँ सुनाई थी। इसी कारण नैमिषारण्य को 'ऋषियों की तपोस्थली' कहा जाता है। यह भी मान्यता है कि जब ब्रह्माजी धरती पर मानव जीवन की सृष्टि करना चाहते थे, तब उन्होंने यह उत्तरदायित्व इस धरती की प्रथम युगल जोड़ी मनु एवं सतरूपा को दिया था। तदनन्तर मनु और सतरूपा ने नैमिषारण्य में ही 23,000 वर्षों तक साधना की थी। नैमिषारण्य का प्रायः प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड की पुष्पिका में प्राप्त होता है। पुष्पिका में उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे भगवान् श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में महर्षि वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया। 'लेमिश् शब्द का अर्थ है 'सुदर्शन चक्र'। भगवान् विष्णु के सुदर्शन चक्र के बाहरी सतह ही 'श्लेमिश्' कहलाती है। कहा जाता है कि जिस स्थान पर सुदर्शन चक्र गिरा था, उसे ही नैमिषारण्य कहा जाने लगा। यहाँ चारों ओर जंगल थे। जिस स्थान पर चक्र पृथ्वी से टकराया, वहाँ पानी का झरना निकल आया।
यहाँ है विष्णु की स्वयंभू आकृति
Esta historia es de la edición August 2023 de Jyotish Sagar.
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