![उच्च ग्रह, नीच ग्रह एवं अस्तंगत ग्रह !](https://cdn.magzter.com/1382621400/1677752613/articles/EFwYzHaS_1678359869985/1678360395048.jpg)
राहु-केतु छाया ग्रह हैं, जो ग्रह पिण्ड नहीं हैं, क्योंकि ये आकाशीय मण्डल में दिखाई नहीं देते हैं। सूर्य ग्रहों के राजा हैं, तो मंगल सेनापति, शनि न्यायाधीश हैं, शुक्र दानवों और गुरु देवताओं के गुरु हैं। ये सभी ग्रह कभी उच्च-नीच नहीं होते। केवल ग्रहों की युतियों के कारण शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। प्रत्येक ग्रह अपनी उच्च राशि में तीव्रता से परिणाम देता है और नीच राशि में मन्दता के साथ परिणाम देता है। अगर वह ग्रह आपकी जन्मपत्रिका में अकारक है, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह उच्च का है अथवा नीच का।
उच्च ग्रह
नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह को किसी एक राशि विशेष में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है, जिसे इस ग्रह की उच्च की राशि कहा जाता है।
नीच ग्रह
इसी तरह अपनी उच्च की राशि से ठीक सातवीं राशि में स्थित होने पर प्रत्येक ग्रह के बल में कमी आ जाती है तथा इस राशि को इस ग्रह की नीच राशि कहा जाता है। ग्रह कोई भी हो, वह नीच नहीं होता। बस उनका फल शुभाशुभ होता है। नीच ग्रह से मतलब शब्द के अर्थ में नहीं होता, अपितु उस ग्रह में ताकत कम होती है और वह कमजोर होता है। उच्च और नीच ग्रह दो ग्रहों की युतियाँ होने पर विभिन्न तत्त्वों की प्रधानता होने से उनके फल शुभ अथवा अशुभ हो जाते हैं। जब दो ग्रहों की युति हो जाती है और दोनों ग्रहों में विपरीत तत्त्वों की प्रधानता हो, तो उसे 'नीच' कहा जाता है।
इस सम्पूर्ण चराचर जगत् में दो तत्त्वों की प्रधानता है: पहला अग्नि और दूसरा वायु।
यदि इन दोनों तत्त्वों के ग्रह एक ही घर अथवा भाव में उपस्थित हो जाते हैं, तो वे नीच ग्रह के और जब समान तत्त्व वाले ग्रह एक ही घर अथवा भाव में आ जाएँ, तो वे 'उच्च ग्रह' कहलाते हैं। जो ग्रह जिस राशि में उच्च का होगा, उससे सातवीं राशि में जाकर वह नीच का हो जायेगा।
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![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
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पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
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मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
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हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
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आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
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ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
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गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
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सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
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अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
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सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।