भारत के विभाजन का पुनरावलोकन करें, तो कुछ ऐसे तथ्य सामने आते हैं, जिन्हें-
■ कभी सामने नहीं आने दिया गया,
■ सामने आए, तो दबा - छिपा दिया गया और
■ फिर भी बात नहीं बनी, तो सिरे से खारिज ही कर दिया गया । यह तथ्य भारत भूमि के साथ, यहां की संस्कृति और यहां के धरतीपुत्र हिन्दुओं के साथ सदियों से होते आ रहे ऐसे अन्याय और अत्याचारों से संबंधित हैं, जिनकी चीख तक को उठने अवसर नहीं दिया गया।
अफगानिस्तान, पाकिस्तान और पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश के इतिहास को देखें। सब भारत से ही अलग हुए हैं, और एक ही बहाने से अलग हुए हैं।
प्रथम दृष्टि में ही स्पष्ट हो जाता है कि भारत से विभाजन की मांग या उसकी मुहिम का सार केवल यह था कि इन्हें ऐसा निजाम चाहिए था, जिसमें हिंदुओं और हिंदू अतीत के नरसंहार को किसी समाज, व्यक्ति या कानून के प्रतिरोध का सामना न करना पड़े।
‘सीधी कार्रवाई' का और क्या अर्थ था? अलग पाकिस्तान की मांग का मुख्य वैचारिक आधार क्या था?
पाकिस्तान और बांग्लादेश वे देश हैं जिन्हें इस्लाम के नाम पर भारत से अलग किया गया है । और जो बात ऊपर कही गई है, उसे वह वहां पूरा कर चुके हैं। वहां हिंदू अल्पसंख्यकों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए शून्य अधिकार हैं; जीवन की, आत्मसम्मान की सुरक्षा शून्य है, और कट्टरपंथी इस्लाम के सतत दबाव में उनकी कोई सुनवाई तक नहीं है । उसे 'सामान्य' मानकर पेश किया जाताI
पाञ्चजन्य का यह विशेषांक केवल वर्तमान की घटनाओं से प्रेरित नहीं है। यह 1947 में हुए विभाजन की विभीषिका में झांकने का अवसर देने वाली दरार है, जो न केवल अतीत की स्पष्ट झलक देती है, बल्कि इस निरंतर प्रक्रिया के बारे में चेतावनी भी देती है।
Esta historia es de la edición August 21, 2022 de Panchjanya.
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फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
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स्वरोजगार में जुटे शरणार्थी
दिल्ली में रहने वाले 58 पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों को कई सेवाभावी संगठनों की ओर से रोजगार के लिए दी गई मदद । कोई सब्जी, तो कोई फल, तो कोई बेच रहा है कचौरी
लोकजागरण के लिए लोकोत्सव
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पाप कांग्रेस का, धो रही है भाजपा
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