गुजरात दंगा मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट ने दो पुलिस अफसरों और एक मंत्री को झूठा साबित कर दिया। कोर्ट ने एसआईटी के वकील की इस बात को सही पाया कि आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट (पुलिस उपायुक्त इंटेलिजेंस), आरबी श्रीकुमार (एडीजीपी) और मंत्री हरेन पांड्या गुजरात दंगों के बाद हुई एक बैठक में मौजूद ही नहीं थे।
इन तीनों ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 फरवरी 2002 को ली गई कानूनव्यवस्था पर विशेष बैठक में डीजीपी और अन्य अफसरों से कहा था कि हिन्दुओं को मुसलमानों के प्रति गुस्सा निकालने दिया जाए। एसआईटी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।
एसआईटी ने उनके फोन रिकॉर्ड की जांच की और पाया कि उनके पास इस बैठक के बारे में कोई सूचना नहीं थी, न ही बैठक में मौजूद लोगों ने उनकी मौजूदगी की पुष्टि की थी। वहीं हरेन पांड्या कैबिनेट मंत्री नहीं थे इसलिए वे भी बैठक में नहीं थे। ये आरोप उनके दिमाग की उपज थे। वहीं, आरबी श्रीकुमार एक असंतुष्ट अधिकारी थे जिन्होंने अपनी खुन्नस निकालने के लिए ये आरोप लगाए थे। कोर्ट ने इस मामले में एसआईटी की जांच की प्रशंसा की और और कहा कि एसआईटी ने निष्पक्ष जांच की है। आरोप मामले को सनसनीखेज बनाने और राजनीतिकरण करने के लिए थे। तीनों ने खुद को बैठक में चश्मदीद गवाह बताया था। लेकिन ये पूरी तरह से झूठा निकला। उनके इन्हीं आरोपों पर वृहत्तर षड्यंत्र की बुनियाद खड़ी की गई, लेकिन एसआईटी ने उसे झूठा साबित कर दिया।
साजिश रचने के नहीं मिले सबूत: एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद जकिया जाफरी के वकील कपिल सिब्बल ने वृहत्तर षड्यंत्र की दलील से किनारा कर लिया था। साथ ही कहा था कि वह मुख्यमंत्री की 27 फरवरी 2002 की समीक्षा बैठक से संबंधित जांच आगे नहीं बढ़ाना चाहते। कोर्ट ने कहा कि वृहत्तर साजिश कुछ नहीं बल्कि भट्ट, श्रीकुमार और पांड्या के सनसनीखेज खुलासों पर आधारित थी जिसे एसआईटी ने सिरे से झूठ साबित कर दिया। जाफरी ने शुरू में नौकरशाहों, नेताओं, लोक अभियोजकों, बजरंग दल, विहिप और राज्य सरकार के राजनीतिक अधिकारियों की जांच नहीं करने का आरोप लगाया था।
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