लोकसभा के राजनीतिक अखाड़े में एक्ट्रेस कंगना रनौत बॉलीवुड का अपना मोह नहीं छोड़ पा रही हैं। पिछले साल भर से स्थानीय नेताओं के साथ जिस तरह वे हिमाचली वेशभूषा में दिख रही थीं, उसी से एहसास था कि कंगना हिमाचल में रंग जमाएंगी। बॉलीवुड में उनका जिस तरह दबंग अंदाज है, हिमाचल में चुनाव प्रचार के दौरान भी उनके तेवर वैसे ही कड़े हैं। यहां उनके तेवर और उनके परिधान दोनों की ही बराबर से चर्चा हो रही है।
बोलने से न चूकने वाली कंगना ने धाकड़, मणिकर्णिका, क्वीन और तेजस में जैसे किरदार निभाए हैं, उसका अक्स उनके राजनीतिक भाषणों में भी साफ दिख रहा है। मंच से दहाड़ कर वे कांग्रेस प्रत्याशी और विपक्ष को जिस तरह के वाक्यों और शब्दावली से निशाना बना रही हैं, वह देवभूमि के लोगों को अचरज में डाल रहा है। एक सभा में कंगना ने कहा कि कांग्रेस के बड़े पप्पू और छोटे पप्पू को पता नहीं चलता। ऐसा नहीं है कि उनका वार सिर्फ विरोधियों के लिए ही है। बड़बोली कंगना ने भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को उस वक्त बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया, मंडी में उन्होंने कहा, ‘‘हिमाचल में भाजपा अपनी गलतियों से बहुत कम अंतर से हार गई।’’
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
आजाद तवायफ तराना
तवायफों पर आई नई वेबसीरीज हीरामंडी ने फिर कोठेवालियों और देवदासियों के साथ हिंदुस्तानी सिनेमा के रिश्तों की याद दिलाई
अगला द्रोण कौन
टीम इंडिया में अर्जुन तो बहुत, उन्हीं को संवारने के लिए एक ऐसे कोच की तलाश, जो टीम को तकनीकी-मानसिक मजबूती दे सके
ममता दीदी की दुखती रग
इस चुनाव में अपनी पार्टी के नेताओं का भ्रष्टाचार ही ममता की सबसे बड़ी चुनौती
हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
तीसरी बारी क्यों
विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार और संविधान बदलने तथा आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर देश की जनता को गुमराह नहीं कर सकता
क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा