देशों के बीच आपसी मतभेदों, यहां तक कि सबसे जटिल मतभेदों को भी, को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों से बेहतर कोई जगह नहीं होती. 15-16 सितंबर को उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अलग से बैठक की संभावना को लेकर बड़े पूर्वानुमान थे. 2020 में लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लंबे समय से चल रहे सीमा गतिरोध के बाद दोनों ने पहली बार एक मंच साझा किया, जिसने द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर रूप से नुक्सान पहुंचाया था. अटकलें बेजा नहीं थीं: 8 सितंबर को कोर कमांडर स्तर की वार्ता (16वीं) में सफलता के बाद, भारतीय सेना और चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने उस विवादित गोगरा हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र के पैट्रोलिंग पॉइंट (पीपी) 15 से अपनी सेनाएं हटानी शुरू कर दीं, जहां खूनी झड़प हुई थी. यह पता चला है कि हालांकि चीनी मोदी- शी के बीच बैठक के इच्छुक थे जो संभवत: यह दर्शाने के लिए था कि दोनों देशों के संबंध सामान्य हो रहे हैं, लेकिन भारत ने इसे टाल दिया क्योंकि भारत एलएसी पर मार्च 2020 से पहले की स्थिति बनाने पर जोर दे रहा है और अगर समरकंद में दोनों नेताओं की बैठक होती तो उससे जो संदेश जाता वह बीजिंग के लिए अधिक मुफीद होता.
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