अपनों से नाराजगी में कभी कठोर फैसला ना लें। कुछ बातों को समय पर छोड़ देना अच्छा होता है। वक्त के साथ बहुत सी स्थितियां बदल जाती हैं, लोगों में समझदारी पनपती है और एक बैलेंस बनने लगता है।
जहां चार बरतन होंगे, खड़केंगे ही... यह कहावत यों ही नहीं बनी है। एक छत के नीचे जब अलग-अलग पसंद-नापसंद, स्वभाव, आदतों और उम्र के लोग रहेंगे, तो कभी ना कभी तकरार होगी। प्यार, खुशियों और मौजमस्ती के साथ नाराजगी, वाद-विवाद, विरोध, तंज की स्थिति भी यदाकदा पैदा हो सकती है। वैसे कभीकभार बहस करना अच्छा होता है, इससे रिश्ते जीवंत रहते हैं और व्यक्तित्व निखरता है। लेकिन ऐसा हमेशा होना ठीक नहीं। शांति भंग होती है - नौकरी से जुड़े तनावों, बच्चों की पढ़ाई या रिजल्ट, टीनएजर बच्चों से जुड़े मसलों, बुजुर्गों की शिकायतों, बीमारी, रिटायरमेंट, आर्थिक परेशानियों, किसी अपने को खोने, किसी के दूर जाने या घरेलू कामों के बंटवारे को ले कर...। कभी एक उबाल आने के बाद विरोध की आंच कम हो जाती है, तो कभी ना देखने पर बार-बार उबाल भी आते रहते हैं।
हमेशा सब ठीक नहीं रहता
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