दफ्तर जैसी लाजवाब जगह वहां जितना आराम मिलता है, उतना शायद कहीं भी नहीं मिलता. वहां आने और जाने का ढंग ही निराला होता है. न बीवी की जलीकटी सुननी पड़ती है और न ही बातबात में पड़ोसियों से खिचखिच करनी पड़ती है.
आराम से सुबह 8 बजे उठना. चाय पीते हुए अखबार की खबरें बड़ी लापरवाही से पढ़ना. अगर बीच में कोई दोस्त आ जाए, तो बस समय कटते देर नहीं लगती है. जब तक आप का दोस्त साथ में बैठा है, तब तक बीवी भी अपने काम में उलझी रहेगी.
दफ्तर में समय से पहुंच पर अपनी आदत खराब मत कीजिए. चपरासी ने समय पर दफ्तर खोल दिया हो तो चिंता की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि ग्राहकों को यह संतोष मिलना ही चाहिए कि दफ्तर समय पर खुल गया है.
अफसर की थोड़ी चमचागीरी या मक्खनबाजी से आप उस के चहेते भी बने रहेंगे और आप के आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं होगी.
दफ्तर जाइए तो सीधे कोल्हू के बैल की तरह फाइलों में ही न उलझ जाइए. पहले कैंटीन में जाइए, चाय का और्डर दे कर अपनी शान दिखाने के लिए किसी अनपढ़ या गंवार से उलझ जाएं.
अच्छा हो कि आप अपनी बात राजनीति से शुरू करें, पर ध्यान रहे कि अगर कोई आप की बात काटने लगे, तो बात का रुख मोड़ दें या चुपचाप चाय पी कर वहां से खिसक लें.
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