विभिन्न उद्देश्यों के लिए हमारे देश में उत्पादित अनाज का लगभग 70 प्रतिशत भंडारण किया जाता है और इसमें से लगभग 10 से 12 प्रतिशत अनाज उचित भंडारण न होने की वजह से प्रतिवर्ष खराब हो जाता है जिससे प्रतिवर्ष लगभग 27 हजार करोड़ रुपए की हानि देश को होती है। आज हम अनाज के सुरक्षित भंडारण के खास टिप्स को जानते हैं। इन टिप्स से जहां अनाज भंडारण सुरक्षित रहेगा वहीं आपको नमी, दीमक, चूहों आदि से छुटकारा मिल जायेगा।
भंडारगृह में संग्रहित अनाज को दो प्रकार के कारकों से हानि होती है। 1 जीवित : कीट, फफूंद, चूहे तथा अनेक प्रकार के जीवाणु। 2. अजीवित : अनाज में नमी, भंडारगृह का तापमान, आर्द्रता आदि।
प्रमुख कीट एवं उनकी पहचान :
खपरा बीटल : प्रौढ़ कीट छोटी अंडाकार : पीले भूरे या काले रंग की मादा होती है जिसकी लंबाई 2.5 मि. मी. होती है। केवल सूँडी ही अनाज को खाती है और इस कीट की कोई भी अवस्था दानों के भीतर नहीं पायी जाती है। सूँडी का प्रकोप मुख्यत: अनाज के भ्रूण पर होता है। मादा अंडे अनाज की सतहों एवं भंडारगृह दीवार की दरारों में देते हैं। औसतन 35 डिग्री सेल्सियस पर अपना जीवन चक्र 50 दिनों में पूरा कर लेते हैं तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यह कीट जीवित रहता है।
सुरसुरी : प्रौढ़ गहरे भूरे, काले रंग के सिर आगे की ओर सूंड ( थूथन) के रूप में होता है एवं पंख के ऊपर चार छोटे हल्के धब्बेनुमा रचना होती है। प्रौढ़ एवं सूँडी दोनों ही क्षति पहुँचाते है। सूँडी सामान्यत: अनाज के दाने के भीतर खाते और विकसित होते हैं तथा वर्ष में 5-7 जीवन चक्र पूरा करते हैं। ये कीट गेहूं के अलावा चावल, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा में भी लगता है। यह कीट अनाज में अधिक नमी आने के कारण होता है।
चावल का घुन : यह कीट भूरे लाल रंग का होता है तथा इसके सिर का अग्रभाग नुकीला होता है प्रौढ़ मादा दानों में छोटी सी गुहा बनाकर इसमें अंडे विसर्जित करती है। इल्लियां अंडों से निकलकर अंदर ही अंदर दानों को खाती हैं। यह कीट चावल के साथ गेहूं, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों में लगता है।
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मिट्टी के पीएच में सुधार और फसल पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने विकसित किए नए उत्पाद
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पूर्वीजर हरियाणा में धान की सीधी बिजाई एक प्रयत्न तो बनता है
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