सण्डा विधि से धान की रोपाई
Modern Kheti - Hindi|15th May 2023
सण्डा का शाब्दिक अर्थ होता है तगड़ा या हृष्ट-पुष्ट (रोबस्ट) क्योंकि इस विधि से तैयार नर्सरी पहली सघन रोपाई तथा अच्छे प्रबन्ध के बाद हृष्ट-पुष्ट होती है जिसमें सूखा एवं बाढ़ दोनों सहने की क्षमता होती है।
डा. राम प्रताप सिंह, नरेन्द्र देव
सण्डा विधि से धान की रोपाई

भारत वर्ष की बढ़ती हुई आबादी को खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति हेतु सन् 2050 के अन्त तक अनुमानतः 180 मिलियन टन चावल की आवश्यकता होगी। हमारे देश की 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या चावल को मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग करती है। देश के कुल चावल उत्पादन का लगभग 12 प्रतिशत उत्पादन धान के अर्न्तगत कुल आच्छादित क्षेत्रफल के 13 प्रतिशत भाग उत्तर प्रदेश द्वारा किया जा रहा है। पिछले लगभग एक दशक के दौरान चावल की उत्पादकता देश एवं प्रदेश स्तर पर 20 कुन्तल प्रति हैक्टेयर के आस-पास ही रहने के कारण कुछ चावल के उत्पादन में ठहराव आ गया है। बढ़ती जनसंख्या की मांग तथा घटते प्राकृतिक संसाधनों के कारण धान उत्पादन हेतु ऐसी तकनीक की आवश्यकता है जो सस्ती, टिकाऊ एवं पर्यावरण हितैषी होने के साथ-साथ अधिक पैदावार देने वाली भी हो। सामान्य धान के उत्पादन तकनीकी की तुलना में सण्डा विधि एक ऐसी तकनीक है जिसमें सारी विशेषतायें विद्यमान हैं तथा यह पर्यावरण संरक्षित एक सस्ती एवं अधिक पैदावार देने वाली तकनीक है।

प्रजातियों का चयन: अच्छी पैदावार व उत्तम गुणवत्ता लेने के लिये अच्छी प्रजाति का चुनाव अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिसमें निम्नलिखित गुण होना अनिवार्य है:-

  • अधिक पैदावार देने वाली हो।
  • उत्तम गुणवत्ता युक्त हो।
  • कीट व रोग के लिये प्रतिरोधी हो।
  • कम ऊंचाई तथा कम समय में पकने वाली हो। 
  • बाजार में अधिक मांग एवं अच्छी कीमत अदा करने वाली होनी चाहिये।

बीज शोधन: नर्सरी डालने से पूर्व बीज शोधन अवश्य कर लें। इसके लिये जहां पर जीवाणु झुलसा या जीवाणुधारी रोग की समस्या हो वहां स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 40 प्रतिशत टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4 ग्राम मात्रा/25 किग्रा. बीज की दर से 100 लीटर पानी में मिलाकर रातभर के लिये भिगो दें। दूसरे दिन घोल से निकाल कर छाया में सूखाकर नर्सरी डालें। यदि शाकाणु झुलसा की समस्या क्षेत्रों में नहीं है तो 25 किग्रा. बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन निकाल कर अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद 62.5 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम को बीज में मिलाकर छाया में अंकुरित करके नर्सरी डाली जाये। बीज शोधन हेतु बायोपेस्टीसाइड का प्रयोग किया जाये।

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लम्पी स्किन बीमारी गाय व भैंसों में फैलने वाला वायरस जनित रोग है। इस बीमारी में पशु को तेज बुखार, भूख न लगना, दूध में गिरावट, नाक व मूँह से पानी गिरना इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं।

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पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (सीआईबीआरसी) के साथ बायोकंट्रोल एजेंट ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम 2 प्रतिशत डब्ल्यूपी को पंजीकृत करके एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर पर पहुंच गया है। इस पंजीकरण का उद्देश्य बासमती चावल में फुट रोट या बकाने रोग का प्रबंधन करना है, जो इस क्षेत्र में लगातार समस्या रही है, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है और राज्य की निर्यात संभावनाओं को खतरा होता है।

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देश में अच्छी नस्ल के घोड़ों की कमी एक गंभीर समस्या है। ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस प्रयोग से अच्छी नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। ऐसी ही नस्ल लेह-लद्दाख में पाई जाने वाली देसी टट्टू नस्ल जांस्कारी भी है।

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कृषि आंकड़ों को बेहतर करेगी डिजिटल फसल सर्वेक्षण
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वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारत सटीक रकबे का आकलन करने के लिए पूरे देश में उन्नत विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) द्वारा समर्थित नियमित डिजिटल फसल सर्वेक्षण करके अपनी कृषि सांख्यिकी प्रणाली को मजबूत करने की योजना बना रहा है।

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