भारत में सड़क हादसों में हर साल लाखों लोग अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं. 2021 में देश में 4 लाख से भी ज्यादा सडक हादसे हुए थे जिन में 1 लाख 55 हजार मौतें हुई थीं. जाहिर है इस से भी ज्यादा लोग स्थायी या अस्थायी तौर पर अपाहिज हुए थे. चिंता का विषय यह कि इन सड़क हादसों पर किसी ने यह कभी नहीं कहा कि चूंकि मौत का या अपाहिज होने की रिस्क रहती है इसलिए लोगों को सड़कों पर नहीं चलना चाहिए. हां यह जरूर हर किसी ने कहा था कि लोगों को संभल कर चलना चाहिए. यानी कुछ भी हो जाए मंजिल पर पहुंचना है तो सड़कों पर चलना छोड़ना न तो संभव है और न ही व्यावहारिक बात है.
प्यार की राह पर चलने वाली 27 वर्षीय श्रद्धा का जो हश्र उस के प्रेमी आफताब ने किया वह एक नाकाबिले माफी जुर्म है जिस के लिए वह कतई हमदर्दी नहीं बल्कि सख्त से सख्त सजा का हकदार है ऐसा दुर्दात और जघन्य हादसा अकसर नहीं होता, लेकिन जब हो गया तो हर किसी को दुख हुआ और सभी ने सड़क हादसों की तर्ज पर कुछ न कुछ कहा, लेकिन परंपरावादी लोग यही कहते नजर आ रहे हैं कि इस से तो अच्छा है कि प्यार किया ही न जाए और किया जाए तो पेरैंट्स की इजाजत ले ली जाए. पर यह कहना कम है, प्रमुखता से हल्ला यह मचाया गया कि हिंदू लड़कियों को मुसलिम लड़कों से प्यार नहीं करना चाहिए नहीं तो न केवल उन के बल्कि सनातन धर्म और संस्कृति के 35 टुकड़े होना तय है.
सभ्य समाज के लिए कलंक
मामला क्या है और क्यों व कैसे हुआ इस से पहले तरस उन लोगों की मानसिकता पर खा लेना जरूरी है जो इस बीभत्स कांड को लव जिहाद कहते लड़कियों को प्यार के रास्ते पर न चलने की नसीहत दे रहे हैं क्योंकि श्रद्धा हत्याकांड में भी अपना धर्म उन्हें खतरे में नजर आ रहा है. जाने क्यों और कैसे तंदूर कांड में मारी गई नैना साहनी के बाद यही धर्म सलामत बच गया था तब क्यों लड़कियों को नसीहतें धर्म गुरुओं ने नहीं दी थीं और न ही मीडिया वालों ने यह कहा था कि हमें शिकायत नैना से भी है.
Diese Geschichte stammt aus der December Second 2022-Ausgabe von Grihshobha - Hindi.
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आजादी सिर्फ आदमियों के लिए नहीं
पैट डॉग्स आदमी का साथी सदियों से रहा है पर जब से आदमी ने गांवों को छोड़ कर घने शहरों की बस्तियों और फिर बहुमंजिले मकानों में रहना शुरू कर दिया है, मैन ऐनिमल कंपीटिशन चालू हो गया है.
यहां मायावी मकड़जाल है
ई कॉमर्स के हजार गुण हों पर ई असलियत में यह एक तरह की साजिश है जिस में सस्ती लेबर का इस्तेमाल कर के खातेपीते लोगों को घर से निकले बिना सब सुविधाएं दिलाना है. ई कॉमर्स का मुख्य धंधा एक तरफ वेयर हाउसिंग, स्टैकिंग और डिलिवरी पर निर्भर है तो दूसरी ओर ग्राहकों को मनमाने प्रोडक्ट घर बैठे पाने के लालच में खरीदने के लिए एनकरेज करना है.
औरतों को गुलाम बनाए रखने की साजिश
पिछले छले आम चुनावों में तरहतरह से मतदाताओं को प्रलोभन देने और हर वोट की कीमत है, समझ कर सभी पार्टियों ने परस्पर विरोधी बातें भी कहीं पर फिर भी जड़ों में अंदर तक जमा भेदभाव पिघला नहीं. देश का बड़ा वर्ग मुसलमानों, दलितों को ही अलगअलग रखता रहा. इन की ही नहीं सवर्णों व ओबीसी यानी पिछड़ों की औरतों को भी निरर्थक समझता रहा.
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गृहशोभा एम्पावर मौम्स इवैंट
'मदर्स डे' के खास मौके पर महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाते हुए 'दिल्ली प्रैस की मैगजीन गृहशोभा ने 'एम्पावर मौम्स' इवैंट का आयोजन किया. इस के सह-संचालक एपिस थे. एसोसिएट स्पौंसर जॉनसंस एंड जॉनसंस, स्किन केयर पार्टनर ग्रीनलीफ, गिफ्टिंग पार्टनर डेलबर्टो, होमियोपैथी पार्टनर एसबीएल और स्पैशल पार्टनर श्री एंड सैम थे.
संस्कार धर्म का कठोर बंधन
व्यावहारिकता के बजाय संस्कारों के नाम पर औरतों को गुलाम रखने की एक साजिश सदियों से चली आ रही है. आखिर इस के जिम्मेदार कौन हैं...