पैदल भ्रमण करते समय शरीर सीधा व वस्त्र कम रहें। दोनों हाथ हिलाते हुए और नाक से गहरे-गहरे श्वास लेते हुए भ्रमण करना चाहिए गहरे श्वास लेने से प्राणायाम का भी लाभ मिलता है। शारीरिक के साथ यह मानसिक स्वास्थ्य में भी लाभदायी है। इससे काम, क्रोध, ईर्ष्या आदि मनोदोषों का शमन होता है तथा एकाग्रता विकसित होती है। ओस की बूँदों से युक्त हरी घास पर टहलना अधिक हितकारी है। यह नेत्रों के लिए विशेष लाभकारी है। वर्षा के दिनों में भीगी घास पर टहल सकते हैं।
भ्रमण सामान्यरूप से अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार मध्यम गति से ही करें। सुश्रुत संहिता (चिकित्सा स्थान : २४.८०) में आता है :
यत्तु चङ्क्रमणं नातिदेहपीडाकरं भवेत्।
तदायुर्बलमेधाग्निप्रदमिन्द्रियबोधनम् ।।
'जो भ्रमण शरीर को अत्यधिक कष्ट नहीं देता वह आयु, बल एवं मेधा प्रदान करनेवाला होता है, जठराग्नि को बढ़ाता है और इन्द्रियों की शक्ति को जागृत करता है।'
Diese Geschichte stammt aus der February 2023-Ausgabe von Rishi Prasad Hindi.
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एकमात्र सुरक्षित नौका
सद्गुरु के ये लक्षण हैं। यदि आप किसी व्यक्ति में इन लक्षणों को पाते हैं तो आप उसे तत्काल अपना गुरु स्वीकार कर लें। सच्चे गुरु वे हैं जो ब्रह्मनिष्ठ तथा श्रोत्रिय होते हैं।
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
महात्मा बुद्ध कहा करते थे : ‘“आनंद ! सत्संग सुनने इतने लोग आते हैं न, ये लोग मेरे को नहीं सुनते, अपने को ही सुन के चले जाते हैं।”
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(पिछले अंक में आपने 'पंचकोष-साक्षी विवेक' के अंतर्गत 'प्राणमय कोष साक्षी विवेक' के बारे में जाना। उसी क्रम में अब आगे...)
बड़ा रोचक, प्रेरक है शबरी के पूर्वजन्म का वृत्तांत
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गुरुपूर्णिमा निकट आ रही है। इस अवसर पर ब्रह्मानुभवी महापुरुषों द्वारा अपने शिष्यों की गढ़ाई और सत्शिष्यों द्वारा ऐसी कसौटियों में भी निर्विरोधता, अडिग श्रद्धा-निष्ठा और समर्पण युक्त आचरण का वृत्तांत सभी गुरुभक्तों के लिए पूर्ण गुरुकृपा की प्राप्ति का राजमार्ग प्रशस्त करनेवाला एवं प्रसंगोचित सिद्ध होगा।
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पराशरजी अपने शिष्य मैत्रेय को आत्मज्ञानबोधक उपदेश देते हुए एक राजपुत्र की कथा सुनाते हैं :
गुरुद्वार की उन कसौटियों में छुपा था कैसा अमृत!
लौकिक जीवन में उन्नत होना हो चाहे आध्यात्मिक जीवन में, निष्काम भाव से किया गया सेवाकार्य मूलमंत्र है।
सर्वपापनाशक तथा आरोग्य, पुण्यपुंज व परम गति प्रदायक व्रत
१७ जुलाई को देवशयनी एकादशी है। चतुर्मास साधना का सुवर्णकाल माना गया है और यह एकादशी इस सुवर्णकाल का प्रारम्भ दिवस है। ऐसी महिमावान एकादशी का माहात्म्य पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से:
गुरुमूर्ति के ध्यान से मिली सम्पूर्ण सुरक्षा
अनंत-अनंत ब्रह्मांडों में व्याप्त उस परमात्म-चेतना के साथ एकता साधे हुए ब्रह्मवेत्ता महापुरुष सशरीर ब्रह्म होते हैं। ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्... ऐसे चिन्मयस्वरूप गुरु के पूजन से, उनकी मूर्ति के ध्यान से शिष्य के अंतः स्थल में उनकी शक्ति प्रविष्ट होती है, जिससे उसके पूर्व के मलिन संस्कार नष्ट होने लगते हैं और जीवन सहज में ही ऊँचा उठने लगता है।
गुरुभक्ति की इतनी भारी महिमा क्यों है?
धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः । धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता ॥