प्रस्तुत लेखमाला 'कैसे करें सटीक फलादेश?' के अन्तर्गत विभिन्न भावों में सूर्यादि नवग्रहों के भावगत, राशि-नक्षत्रगत, युति एवं दृष्टिजन्य फलों का सोदाहरण वर्णन किया जा रहा है।
विगत चार अंकों से कुम्भ लग्न के अष्टम भाव में स्थित ग्रहों के उक्त आधार पर फलों का वर्णन किया जा रहा है, जिसके तहत अभी तक सूर्य से गुरु तक के फलों का वर्णन किया जा चुका है। प्रस्तुत आलेख में कुम्भ लग्न के अष्टम भाव में स्थित शुक्र एवं शनि के राशि, नक्षत्र एवं भावगत तथा युति एवं दृष्टिजन्य फलों का सोदाहरण वर्णन कर रहे हैं।
आगे बढ़ने से पहले विगतांक में दिए गए कुम्भ लग्न के अष्टम भाव में स्थित बुध एवं गुरु के फलों से सम्बन्धित कतिपय और उदाहरण प्रस्तुत हैं।
उदाहरण: 11.8.10 : एक जातक
जन्म दिनांक: 16 सितम्बर, 1993
जन्म समय : 17:30 बजे
जन्म स्थान : 20300; 73पू52
जातक ने इंजीनियिरंग किया है, परन्तु उसे अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरी की प्राप्ति नहीं हुई है। आरम्भ में कॅरिअर में काफी संघर्ष रहा है। जन्म स्थान के आसपास ही जातक नौकरी करने के लिए इच्छुक है। जातक की जन्मपत्रिका में लग्नेश शनि लग्नस्थ है तथा योगकारक शुक्र से परस्पर दृष्टि संबंध से राजयोग का निर्माण कर रहा है, परन्तु शुक्र सन्धिगत है और शनि भी 01 अंश 14 कला पर है।
अष्टम भाव में पंचमेश बुध एवं कर्मेश मंगल की युति से राजयोग निर्मित हो रहा है, परन्तु यहाँ मंगल 29 से अधिक अंशों पर है।
यह राजयोग सशर्त है, जो कि जन्मस्थान से दूर उन्नति देता है। कर्मेश मंगल की गुरु के साथ युति से धनयोग का भी निर्माण हो रहा है। अष्टमस्थ धनयोग जन्मस्थान से दूर उन्नति प्रदान करता है। यही कारण है कि जातक को जन्मस्थान के आसपास अपेक्षित जॉब की प्राप्ति नहीं हो रही है।
उदाहरण: 11.8.11 : एक जातिका
जन्म दिनांक : 08 अगस्त, 1969
जन्म समय : 20:00 बजे
जन्म स्थान : 25357; 86पू15
Diese Geschichte stammt aus der April-2023-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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