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कल्याणकारी संदेशों वाली एकादशी

Dainik Bhaskar Chhatarpur

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October 29, 2025

देवोत्थान एकादशी भक्त के उत्थान का मार्ग दिखाने वाला पर्व भी है। इसके विधानों को अपनाया जाए तो यह दिन मानव जीवन और समाज को ऊपर उठाने का निमित्त बन सकता है।

- डॉ. शंकरलाल शास्त्री

दे वोत्थान एकादशी अर्थात देव प्रबोधिनी एकादशी यानी देवउठनी के साथ ही पाणिग्रहण संस्कार जैसे सभी मांगलिक कार्यों का आरंभ हो जाता है। पुराणों में स्वयं भगवान विष्णु कहते हैं- 'प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में मेरे शयन के पश्चात देव प्रबोधिनी को जो भक्तजन मेरी पूजा-अर्चना करते हैं, उनके घर में लक्ष्मी सहित वास करता हूं।' इसीलिए इस तिथि से बढ़कर कोई फलदायी तिथि नहीं है। भारतीय संस्कृति में यह शुभ दिन न केवल सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों के द्वार खोलता है, बल्कि यह जीवन में मंगल और उत्थान का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

दिन में शयन का निषेध

शास्त्रों में देवप्रबोधनी एकादशी के बाद से दिन में शयन का निषेध किया गया है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए तो उत्तम है ही, हमारी दिनचर्या और नियमित रूप से कार्य की गति व शक्ति को बढ़ाने का सूत्र भी है। धर्मशास्त्रीय दृष्टि से, दिन में शयन न कर उत्साही, ऊजर्जावान और कर्मठ बने रहने का संदेश दिया गया है।

शांति में लक्ष्मी आगमन

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