लोकसभा चुनाव से ऐन पहले केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी। मुसलमान इसे लेकर पहले से ही सशंकित हैं। भाजपा ने उन्हें रिझाने के लिए तमाम प्रयास तो किए लेकिन मुसलमानों की आशंकाएं अपनी जगह कायम हैं। सीएए की अधिसूचना से तय है कि वोटों ध्रुवीकरण को धार मिलेगी। जानकारों के मुताबिक अब मुस्लिम मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न में किसी बड़े बदलाव की संभावना न के बराबर है। यानी, पिछले चुनावों की तरह ही भाजपा को मुस्लिम मतों का कोई बड़ा हिस्सा नहीं मिल सकेगा। चुनाव में मुसलमानों के रुख का विश्लेषण कर रहे अजित बिसारिया....
आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ बदला, पर भाजपा को लेकर मुस्लिम मतदाताओं का रुख बदस्तूर कायम रहा। सीएसडीएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन चुनावों में करीब 8 प्रतिशत मुसलमानों ने ही भाजपा को वोट दिया। वर्ष 2019 में जब नागरिकता संशोधन बिल लाया गया तो इसके खिलाफ पूरे देश में आंदोलन हुए। तब आंदोलन में शामिल मुस्लिमों का मानना था कि यह कानून भेदभावपूर्ण है। इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिमों को तो नागरिकता देने का प्रावधान है, लेकिन मुसलमानों को यह सुविधा नहीं दी गई है। उनके मन में यह बात घर कर गई कि इस कानून से मुसलमानों की नागरिकता भी खतरे में पड़ सकती है।
यही वजह रही कि 2019 के बाद हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी मुसलमानों का पहले वाला वोटिंग पैटर्न कायम रहा। वर्ष 2020 में बिहार के विधानसभा चुनाव में 77 प्रतिशत मुस्लिम वोट महागठबंधन को मिले थे। 2021 के पश्चिमी बंगाल के चुनाव में 75 प्रतिशत मुस्लिम वोट तृणमूल कांग्रेस को मिले। वर्ष 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में 79 प्रतिशत मुसलमानों ने सपा को वोट किया। इसकी वजह थी कि ये पार्टियां भाजपा के खिलाफ मजबूती से लड़ रही थीं। हालांकि, अब आलिम सीएए कानून से न डरने या फिर लीगल टीम के अध्ययन के बाद प्रतिक्रिया देने की बात कह रहे हैं। वहीं, सीएए को लेकर अधिसूचना जारी होते ही विपक्षी पार्टियों ने भी मुस्लिमों के मन में उठ रही शंकाओं को मुद्दे का रूप देना शुरू कर दिया है, ताकि लोकसभा चुनाव में नफा-नुकसान के लिहाज से अपनी रणनीति तैयार कर सकें।
Diese Geschichte stammt aus der March 12, 2024-Ausgabe von Amar Ujala.
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