पेरैंट्स यही चाहते हैं कि उन का बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ाई करे ताकि उस का भविष्य बेहतर बने. इस के लिए वे बड़ी फीस चुकाते हैं. कई बार वे अपने बच्चों को ऐसे स्कूल में दाखिला दिला देते हैं जहां पर स्कूल की बिल्डिंग तो अच्छी होती है पर स्कूल के टीचर अपने काम के प्रति ईमानदार नहीं होते या उन को पढ़ाने का सही तरीका नहीं पता होता. ऐसे में पेरैंट्स के सामने दुविधा यह होती है कि वे बच्चे का एडमिशन कराते समय स्कूल की बिल्डिंग देखें कि टीचर्स को देखें जिन से बच्चों को पढ़ना होता है.
बच्चों को कानूनी शिक्षा की तैयारी करा रहीं रोमा बच्चानी कहती हैं, 'समय की मांग है कि अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल अच्छी में शिक्षा के सारे मापदंड पूरे किए जाएं, जिन में स्कूल की बिल्डिंग भले ही बहुत भव्य न हो पर बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा को ले कर डिजाइन की गई हो. स्कूल में अच्छे टीचर्स के साथ ही साथ सांइस लैब, लाइब्रेरी और खेल का मैदान जरूर हों. पेरैंट्स काफी हद तक यह बात समझते हैं.'
अगर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की बात करें तो यहां कई चमकदमक वाले स्कूल भी हैं लेकिन अगर प्राथमिकता के लिहाज से देखें तो लामार्ट्स कालेज, सैंट फ्रांसिस, लैरेटो कौन्वेट, माउंट कार्मेल कालेज और मौंटफोर्ट स्कूल ऐसे हैं जो पेरैंट्स की पहली पसंद हैं. ये सभी इंग्लिश मीडियम संस्थान हैं, जहां की शिक्षा व्यवस्था में पढ़ाई सब से पहले होती है. इस के बाद ऐसे स्कूल खुले जिन के नाम मौंटेसरी पर रखे गए. इन में सिटी मौंटेसरी स्कूल का नाम सब से पहले आता है जहां पर स्कूल का बाजारीकरण कर दिया गया.
इस की वजह वे पेरैंट्स भी थे जिन के बच्चे पढ़ने में अच्छे नहीं थे मगर उन के पास पैसा था. वे सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना नहीं चाहते थे. सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना वे शान के खिलाफ समझते थे. कौन्वेंट स्कूल में बच्चों को एडमिशन नहीं मिल पाता था. इन के लिए सिटी मौंटेसरी जैसे स्कूलों ने पढ़ाई की व्यवस्था की. एक तरह से देखें तो यह कोई गलत काम भी नहीं था. इन स्कूलों ने बिजनैस मौडल बना कर शिक्षा का बाजारीकरण भले ही किया लेकिन जरूरतमंद लोगों के लिए शिक्षा की सुविधा को पहुंचाने का काम किया.
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