पुणे की 90 वर्षीया रीना छिब्बर वर्मा की कहानी तब सुर्खियों में आई जब उन्होंने पाकिस्तान के रावलपिंडी में अपने घर को देखने के लिए कई बार वीजा की मांग की और उन्हें वीजा नहीं मिला. उन्होंने आशा छोड़ दी थी कि जीवन रहते वे अपने पैतृक घर को देख सकेंगी पर यह मौका उन्हें 75 साल बाद केवल 3 महीने के लिए मिला, जिस से वे अपने घर को देखने के लिए उत्सुक थीं.
रीना जब महज 15 साल की थीं तब विभाजन के बाद पाकिस्तान के रावलपिंडी से अपना घर छोड़ कर भारत आई थीं. हाल ही में वे सरहद पार कर अपना पुश्तैनी घर देखने के लिए रावलपिंडी गईं तो उन की आंखें भर आईं. वहां उन्होंने पुरानी यादें साझा करते हुए बताया कि जिस याद और दर्द को उन्होंने 75 साल तक दबा कर रखा, उस का फल उन्हें मिला. उन्होंने घरवापसी की कल्पना कभी नहीं की थी, उन्होंने सपने में भी इसे नहीं सोचा था.
मिला सहयोग
पाक उच्चायोग द्वारा रीना छिब्बर वर्मा को सद्भावना के तौर पर 3 महीने का वीजा जारी किया गया है. वे 3 महीने तक पाकिस्तान में रह सकती हैं. पकिस्तान से भारत जाते हुए वे भावुक हो गईं. देश छोड़ने के 75 साल बाद रीना छिब्बर शनिवार को वाघाअटारी सीमा से पाकिस्तान अपने घर रावलपिंडी पहुंचीं.
रीना छिब्बर ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि उन्होंने मौडर्न स्कूल में पढ़ाई की है. उन के 4 भाईबहन भी उसी स्कूल में पढ़ने गए थे. उन के एक भाई और एक बहन ने मौडर्न स्कूल के पास स्थित गार्डन कालेज में पढ़ाई की है. विभाजन से पहले हिंदू और मुसलिम कोई मुद्दा नहीं था. सोशल मीडिया पर रीना के कई पाकिस्तानी दोस्त हैं. यहीं पर पाकिस्तानी नागरिक सज्जाद हैदर ने उन से संपर्क किया और रावलपिंडी में उन के घर की तसवीरें भेजीं. धीरेधीरे उन की कहानी पाकिस्तान में चर्चा का विषय बनी.
नहीं था कोई भेदभाव
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