भारतीय जनता पार्टी की स्थापना से ही उसके घोषणापत्रों के तीन वादों में एक रहे समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के संबंध में पहली बार एक विधेयक उत्तराखंड विधानसभा में पारित हो गया। अब यह राज्यपाल के जरिये राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, लेकिन इस पर बवाल पहले ही चालू हो चुका है। विपक्ष ने इस बिल को प्रवर समिति को सौंपने की मांग की थी जिसे सदन में ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया गया। दो दिन की चर्चा के बाद यूसीसी बिल बहुमत से पारित हो गया। यूसीसी लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी।
जिस यूसीसी मसविदे को उत्तराखंड ने पारित किया है उसकी मंशा से लेकर प्रावधानों तक कुछ ऐसे विवादास्पद बिंदु शामिल हैं जिन्हें लेकर महिला संगठनों सहित विपक्षी दलों ने एतराज जताया है। यूसीसी के बारे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है, “प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जिस रामयुग की शुरुआत हुई है, यूसीसी उसमें एक बड़ी पहल है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में यह देश तीन तलाक और अनुच्छेद-370 जैसी ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के पथ पर है।” शायद इसीलिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा कहते हैं, “दरअसल इसे लोकसभा चुनाव से पहले राजनैतिक फायदे के लिए लाया गया है।”
इस 202 पन्ने के विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक विवाह, लिव-इन रिलेशनशिप और विवाह विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य हो जाएगा। कोई भी एक पति या पत्नी के रहते दूसरा विवाह नहीं कर पाएगा। लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा बच्चा वैध माना जाएगा। संपत्ति में बेटियों को बराबर का हक मिलेगा। उत्तराधिकार के नियम कड़े कर दिए गए हैं। जानकारों का कहना है कि बिल लागू होने के बाद उत्तराखंड में विवाह के पहले से प्रभावी अन्य सभी कानून स्वतः निष्प्रभावी हो जाएंगे। सभी विवाह यूसीसी के तहत ही पंजीकृत होंगे।
Diese Geschichte stammt aus der March 04, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
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