अयोध्या इन दिनों रंग-रंगीली है। सवेरा कोहरा लपेटे खिलता है। सरयू नदी में डूबकी लगाते रामबोला साधु-संन्यासियों, स्थानीय लोगों और बाहर से पधारे स्त्री-पुरुषों की भीड़भाड़ है। मंदिरों में घंटे-घड़ियाल बज उठते हैं। दूर कहीं मद्धिम-सी अजान की आवाज भी आती है । दिन लोगों और बंदरों की चिल्ल-पों के साथ ढलता है, तो शाम बत्तियों से जगमग हो उठती है। चारों ओर रंग-रोगन, पुताई-सफाई, पुराना ढहाया- छुपाया जा रहा है। सब कुछ चकमक है। सड़कें चौड़ी और रंगी- पुती हैं | सरयू के घाट नए-नए हैं। हर जगह एक ही रंग का बोलबाला है। मानो सियों, रागियों, विविध संस्कृतियों-संप्रदायों (जैन, बौद्ध) के संगम की नगरी ने एक ही रंग की चादर ऐसे ओढ़ ली है कि स्थानीय लोग थोड़े हैरान, कुछ भौचक्के-से, शायद खुश या खुश दिखने की बरबस कोशिश करते दिखते हैं क्योंकि न वह सरयू रही, न अयोध्या । जिनके घर, दुकानें, मंदिर टूट गए, कहीं और ले जाए गए, वे शिकायत करने के भी जो हकदार नहीं रहे। कायाकल्प किए गए लकदक रेलवे स्टेशन और आसपास के हवाई ठिकानों पर भी खासी भीड़भाड़ है। बसें तो हर ओर से आ रही हैं। तमाम सितारा तथा सामान्य होटल और धर्मशालाएं वगैरह भर चुकी हैं। सरकार या कहिए सरकारें, तो जैसे अयोध्या में ही डेरा डाल चुकी हैं। अफसर-अमला, मंत्रियों, तमाम सरकारी साहबान, लाट साहबों की सायरन बजाती गाड़ियों और काफिलों का शोर भी बेहिसाब है। सो, पुलिसिया इंतजामात भी हर जगह बदस्तूर है। ऐसा लगता है कि सारी दिशाएं अयोध्या की ओर उमड़ पड़ी हैं। फिर तो अयोध्या में बग्घी की सवारी करते केरल के महामहिम आरिफ मुहम्मद खान का यह कहना तो बनता है कि “पूरा देश राममय, अयोध्यामय हो गया है।" या जैसा कि विपक्ष के कई नेता कहते हैं कि किया गया है।
Diese Geschichte stammt aus der February 05, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
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आजाद तवायफ तराना
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ममता दीदी की दुखती रग
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हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
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क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा