सुबह के 7 बज रहे थे. सुबोध जायसवाल उस वक्त अपने घर के आंगन में कुरसी पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे. आसपास का वातावरण काफी शांत था. जायसवाल चाय का अंतिम घूंट पी कर खाली कप रखने वाले ही थे कि उन्हें किसी महिला की चीख सुनाई दी. अचानक कान में पड़ी चीख की तेज आवाज आते ही उन के हाथ से चाय का प्याला गिर पड़ा.
उन्होंने आने वाली चीख की ओर गरदन घुमा कर देखा. किंतु उस बारे में कुछ भी अंदाजा नहीं लग पाया. वह अभी अनुमान ही लगा रहे थे कि उन्हें फिर से एक और चीख सुनाई दी. इस बार चीख की आवाजें पहले से महीन, मगर तेज थीं.
वह चीख किसी बच्ची की थी. इसी के साथ चिल्लाने की आवाजें भी आने लगी थीं. दूसरी चीख से जायसवाल को अंदाजा लग गया था कि चीखनेचिल्लाने की आवाजें उन के साथ वाले मकान से ही आ रही हैं.
उस मकान में महेश तिवारी अपनी मां बीतन देवी, पत्नी नीतू तथा 4 बेटियों अपर्णा ( 15 ), सुवर्णा ( 11 ), अन्नपूर्णा ( 9 ) एवं कृष्णा (16) के साथ रहते थे. तिवारी मानसिक तौर पर अस्वस्थ चल रहे थे. उन का अधिकतर समय पूजापाठ में ही बीतता था.
वह अपने पड़ोसियों से अधिक मेलजोल नहीं रखते थे. उन के मकान की दीवारें चारों ओर से काफी ऊंची थीं. सुबोध जायसवाल अभी उन के बारे में सोच ही रहे थे कि वहीं से दोबारा बच्ची के चीखने की आवाज सुनाई दी. फिर तो उन से रहा नहीं गया.
तेज कदमों से वह अपने घर की छत पर चले गए. महेश तिवारी के मकान की ओर गरदन उठा कर झांकते हुए देखने की कोशिश की. वहां से उन के घर का जो दृश्य दिखा, वह होश उड़ाने वाला था. उन्होंने देखा कि महेश तिवारी के कपड़ों पर खून लगा है और वह हाथ में एक खून से सना चाकू लिए अपने घर में टहल रहा था.
सुबोध जायसवाल किसी अप्रिय घटना की आशंका से सिहर उठे. कहीं महेश ने अपने परिवार वालों के साथ कोई हिंसक वारदात न कर डाली हो. उन्होंने तुरंत इस बात की सूचना मोबाइल से पुलिस को दे दी और पड़ोसियों को आवाज दे कर अपने पास बुला लिया.
यह घटना उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के थाना रानीपोखरी के मोहल्ला नागाघेर की थी. बेहद चौंकाने वाली घटना 29 अगस्त, 2022 को घटित हुई थी.
Diese Geschichte stammt aus der December 2022-Ausgabe von Satyakatha.
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