दिवाकर को बहुत गुस्सा आया और बिना टिफिन लिए ही ऑफिस चला आया. वहां पूरे दिन उस का दिल नहीं लगा. शाम को लौटते समय उस ने एक दुकान से कुछ हरी चूड़ियां खरीदीं और घर पहुंचा.
नीलम अभी भी उदास और गुस्से में थी. उस ने दिवाकर से कोई बात नहीं की. खाने के समय सामने प्लेट रख कर वह चली गई.
जब दिवाकर कमरे में घुसा, तो यह देख कर दंग रह गया कि नीलम अपना बैग पैक कर रही थी. पूछने पर वह बोली, "मैं कल सुबह की ट्रेन से अपने घर चली जाऊंगी. मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. तुम मेरा दर्द नहीं समझते. न ही मुझ से प्यार करते हो. मैं तुम्हारी आंखों में खटकती हूं, तो फिर यहां क्यों रहूं?"
दिवाकर समझ गया कि बात बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है. वह चुपके से चूड़ियां ले कर आया और नीलम के आगे रखता हुआ बोला, “मेरा प्यार इन चूड़ियों की खनखनाहट में है. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. प्लीज, मत जाओ. मेरी जिंदगी की हर सुबह तुम से हैं.
"आज सुबह मैं ने कुछ गलत कहा तो उसे भूल जाओ. बस इतना याद रखो कि मैं हूं तो बस तुम से हूं."
दिवाकर ने यह सब इतने मनुहार भरे शब्दों में कहा कि नीलम का दिल पसीज गया. वह यही तो चाहती थी कि दिवाकर उसे मना ले. यही हुआ भी. दिवाकर के इस अंदाज पर नीलम का दिल उस के प्रति प्यार से भर उठा. इस तरह नाराजगी की जगह उन के रिश्ते में प्यार खिल उठा.
सच है कि कभी शहद सा मीठा और कभी इमली सा खट्टा होता है पतिपत्नी का रिश्ता. कभी प्यार भरी बातें, मानमनुहार, तो कभी नोकझोंक, ताउम्र साथ निभाने और सुखदुख में साथ चलने के इस रिश्ते में जाने कितनी ख्वाहिशें और उम्मीदें होती हैं. इसी में छिपी होती है जिंदगी की असली खुशी.
पर कभीकभी इनसान अपने अहम की वजह से आपसी रिश्ते के बीच एक दीवार खड़ी कर लेता है. छोटीछोटी बातें दिल से लगा कर अपने ही जीवनसाथी से अबोला रखने लगता है. प्यार भरे इस रिश्ते में ऐसी चुप्पी छा जाती है कि समझ में ही नहीं आता कि इसे तोड़ा कैसे जाए.
इस सब की वजह भले ही बहुत छोटी सी होती है, फिर भी लंबे समय तक की खामोशी और नाराजगी इस रिश्ते में कड़वाहट ला कर उसे तोड़ देने के लिए काफी होती है.
Diese Geschichte stammt aus der December First 2022-Ausgabe von Saras Salil - Hindi.
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