Panchjanya - August 21, 2022Add to Favorites

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In dieser Angelegenheit

विभाजन की विभीषिका
खून के आंसू

1947 : टिस और सीख

भारतीय स्वतंत्रता की कहानी और अंततः मातृभूमि का विभाजन यानी हिन्दू नर संहार का वह सबसे बड़ा मुकदमा जिसकी सुनवाई तो छोड़िए, जिसे इतिहास में ठीक से दर्ज भी नहीं किया गया । पाञ्चजन्य का यह विशेषांक केवल वर्तमान की घटनाओं से प्रेरित नहीं है। यह 1947 में हुए विभाजन की विभीषिका में झांकने का अवसर देने वाली दरार है, जो न केवल अतीत का स्पष्ट झलक देती है, बल्कि इस निरंतर प्रक्रिया के बारे में चेतावनी भी देती है।

1947 : टिस और सीख

4 mins

विभाजन आहट आह आस और अटटहास

दांव पर था क्या कुछ और कैसी थी विभाजन की बिसात? निष्ठुरता से मुस्कुराते ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल के मन में क्या पल रहा था ? कैसे अंग्रेजी हुकूमत की कथित शह पर कांग्रेस के नेताओं द्वारा देश को बहकावे में रखा गया और अंततः अनगिनत लाशों पर भारत का बंटवारा हुआ। किस प्रकार संघ के स्वयंसेवकों ने आहत हिन्दू समाज की हर प्रकार से सहायता की।

विभाजन आहट आह आस और अटटहास

10+ mins

खून के आंसू

विभाजन काल की परिस्थिति, साम्राज्यवादी शक्तियों के हित और राजनीतिक हसरतों की कहानी एक तरफ.. मगर उन लोगों से बात करना जिन पर यह आफत गुजरी, दिल दहलाने वाला है। झुर्रियों से अटे चेहरे, धुंधलाती आखें और उस घटनाक्रम को याद कर संघ जाने वाले गले... बुजुर्गों का अचानक फफककर रो पड़ना दबाए गए इतिहास का बांध टूट जाने जैसा है।

खून के आंसू

10+ mins

स्वराज के सोपान

1790-92 में पूरा मालाबार ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ चला गया। अंग्रेजों ने मालगुजारी बढ़ा दी । कोट्टायम के राजा केरल वर्मा थे। उन्हें 'केरल सिंहम यानी केरल का शेर भी कहा जाता था । उन्होंने 1796 में अंग्रेजों का विरोध किया और असंतुष्ट सामंतों की सेना संगठित कर अंग्रेजी सेना को पराजित किया। वर्ष 1805 में केरल वर्मा अंग्रेजों से लड़ते हुए ही बलिदान हुए।

स्वराज के सोपान

2 mins

छटपटाहट सांस्कृतिक, संघर्ष 'स्व' का

स्वराज और स्वतंत्रता की लड़ाई 1857 से बहुत पहले शुरू हुई थी। अलग-अलग कालखंडों में देश के विभिन्न हिस्सों में ये संघर्ष औपनिवेशिक शक्तियों के विरुद्ध थे। हालांकि आंचलिक मोर्चे पर लड़ी गई लड़ाइयां 1857 की क्रांति की तरह संगठित नहीं थीं। स्वराज के लिए हर कोई अपने सामर्थ्य के अनुसार लड़ा

छटपटाहट सांस्कृतिक, संघर्ष 'स्व' का

7 mins

स्वातंत्र्य समर और स्वदेशी विज्ञान

वर्ष 1855 में बंगाल के मुर्शिदाबाद तथा बिहार के भागलपुर जिलों में अंग्रेजों के अत्याचार की शिकार पहाड़िया जनता ने एकजुट होकर उनके विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था। इसे पहाड़िया विद्रोह या पहाड़िया जगड़ा या संथाल हूल कहते हैं। पहाड़िया भाषा में 'जगड़ा' शब्द का शाब्दिक अर्थ है- 'विद्रोह'। यह अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम सशस्त्र जनसंग्राम था।

स्वातंत्र्य समर और स्वदेशी विज्ञान

5 mins

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Panchjanya Magazine Description:

VerlagBharat Prakashan (Delhi) Limited

KategoriePolitics

SpracheHindi

HäufigkeitWeekly

स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद 14 जनवरी, 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक का अवतरण स्वाधीन भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदशोंर् एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों का स्मरण दिलाते रहने के संकल्प का उद्घोष ही था।

अटल जी के बाद 'पाञ्चजन्य' के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में सर्वश्री राजीवलोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरूप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरुण विजय, बल्देव भाई शर्मा और हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर 'पाञ्चजन्य' की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अविचल रहे।

किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है, परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा-स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से 'पाञ्चजन्य' का जन्म हुआ, वह नाम है पं. दीनदयाल उपाध्याय।

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